गुरु रविदास जयंती माघ महीने की पूर्णिमा (पूर्णिमा) के दिन मनाई जाती है, जो आमतौर पर जनवरी या फरवरी में पड़ती है।
गुरु रविदास जयंती एक महत्वपूर्ण पर्व है जो गुरु रविदास के जन्मदिन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। यह पर्व सामाजिक समानता और भक्ति के मूल्यों को महत्व देता है। आइए गुरु रविदास की जीवन यात्रा, उनके उपदेशों और योगदान के बारे में विस्तार से जानें।
गुरु रविदास का जन्म 1377 ई. में वाराणसी, उत्तर प्रदेश के एक निम्न जाति के परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम संतोख दास और माता का नाम कालसा देवी था। बचपन से ही, गुरु रविदास का मन धार्मिक और आध्यात्मिक विषयों की ओर आकर्षित था। उन्हें संत कबीर के शिष्य माना जाता है और उन्होंने समाज में व्याप्त जातिगत भेदभाव और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई।
गुरु रविदास ने अपने जीवनकाल में कई महत्वपूर्ण उपदेश और शिक्षाएं दीं, जो आज भी समाज के लिए प्रासंगिक हैं। उनके उपदेशों का मुख्य विषय समाज में समानता और भक्ति के मार्ग पर चलना था। उन्होंने जातिगत भेदभाव, छुआछूत, और अन्य सामाजिक बुराइयों के खिलाफ संघर्ष किया। उनके अनुसार, सभी मनुष्य समान हैं और भगवान की नजर में कोई ऊंच-नीच नहीं है।
जाति-पांति का विरोध: उन्होंने कहा, "मन चंगा तो कठौती में गंगा," जिसका अर्थ है कि यदि आपका मन पवित्र है, तो सभी स्थान पवित्र हैं।
भक्ति का मार्ग: उन्होंने बताया कि भगवान की भक्ति में ही सच्ची खुशी और शांति है। उन्होंने पूजा-पाठ और धर्म-कर्म को बाहरी आडंबर से मुक्त करने का संदेश दिया।
समानता: उन्होंने समानता का संदेश देते हुए कहा, "एक ही चाम है, सबका एक ही रंग," यानी सबका खून एक जैसा है और सब भगवान की संतान हैं।
गुरु रविदास का योगदान सामाजिक और धार्मिक क्षेत्रों में अत्यंत महत्वपूर्ण है। उनके कुछ मुख्य योगदान इस प्रकार हैं:
सामाजिक सुधार: उन्होंने समाज में जातिगत भेदभाव के खिलाफ आंदोलन किया और समानता के सिद्धांत को प्रचारित किया।
धार्मिक योगदान: उनके भक्ति गीत और दोहों को गुरु ग्रंथ साहिब में शामिल किया गया है। उनकी रचनाओं ने सिख धर्म के संस्थापक, गुरु नानक, को भी प्रभावित किया।
आध्यात्मिक योगदान: गुरु रविदास ने भक्ति मार्ग को सरल और सुलभ बनाया, जिससे आम आदमी भी भगवान की भक्ति में लीन हो सके।
गुरु रविदास जयंती के अवसर पर विभिन्न स्थानों पर धार्मिक कार्यक्रम और समारोह आयोजित किए जाते हैं। इनमें मुख्यतः निम्नलिखित गतिविधियां शामिल होती हैं:
प्रभात फेरी और नगर कीर्तन: भक्तगण सुबह जल्दी उठकर गुरु रविदास के भजनों का गान करते हुए नगर कीर्तन निकालते हैं।
मंदिरों में पूजा: गुरु रविदास के मंदिरों और गुरुद्वारों में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। भक्तगण दीप जलाते हैं और प्रसाद चढ़ाते हैं।
उपदेश और प्रवचन: विभिन्न धार्मिक स्थलों पर गुरु रविदास के उपदेशों और शिक्षाओं का पाठ किया जाता है और प्रवचन होते हैं।
लंगर का आयोजन: इस दिन सामूहिक भोजन (लंगर) का आयोजन किया जाता है, जिसमें सभी लोग बिना किसी भेदभाव के भाग लेते हैं।
गुरु रविदास जयंती का पर्व हमें समानता, भक्ति, और मानवता के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। गुरु रविदास के उपदेश और शिक्षाएं आज भी समाज में प्रासंगिक हैं और हमें सच्ची मानवता का पाठ पढ़ाती हैं। इस पर्व को मनाकर हम उनके महान योगदानों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और उनके उपदेशों को अपने जीवन में अपनाने का संकल्प लेते हैं।
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