अक्षय वट (अक्षयवट), जिसे अमर वट वृक्ष के नाम से भी जाना जाता है, प्रयागराज के इलाहाबाद किले में स्थित एक पवित्र पीपल का वृक्ष है। हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह वृक्ष अविनाशी और शाश्वत माना जाता है। अक्षय वट से जुड़ी एक प्रमुख कथा ऋषि मार्कंडेय की है, जिन्होंने प्रलय के समय इस वृक्ष के नीचे शरण ली थी। उन्होंने इस वृक्ष के नीचे भगवान विष्णु के शाश्वत स्वरूप का दर्शन किया। एक अन्य कथा के अनुसार, भगवान राम, सीता और लक्ष्मण अपने वनवास के दौरान इस वृक्ष के नीचे विश्राम और पूजा करते थे। अक्षयवट की मान्यता समुद्र मंथन से प्राप्त 14 रत्नों में कल्पवृक्ष के अंश के रूप में है| अक्षय वट को लेकर ऐसी मान्यता है कि इसकी जड़ों में सृष्टि निर्माता ब्रह्मा, मध्य भाग में वेणी माधव स्वरूप श्रीहरि विष्णु और अग्र भाग में महादेव शिव-शंकर का वास है| सर्व सिद्धि प्रदान करने वाली आध्यात्मिक शक्ति के केंद्र के तौर पर प्रसिद्ध अक्षय वट ने मुगल काल और अंग्रेजों के शासन में पराभव का दंश झेला मगर इसके बावजूद वह बना रहा. आज यह वृक्ष सनातन धर्म के ध्वजवाहक के तौर पर विश्व भर में अपनी पहचान को पुख्ता कर रहा है.
मंदिर के मुख्य पुजारी प्रधान जी बताते हैं की पुराणों में लिखा गया है कि संगम स्नान करने के बाद अक्षय वट मंदिर में अक्षय वट वृक्ष और स्थापित प्राचीन देवी देवताओं के दर्शन के पश्चात ही गंगा स्नान पूरा माना जाता है. अक्षय मंदिर में, भगवान प्रयागराज ,ब्रह्मा ,नागवशुकी ,कार्तिकेय, मां पार्वती के गोद में विराजमान गणेश, मां काली ,भैरवनाथ यमराज जैसे 33 कोटी के देवी-देवता विद्यमान है. सबसे खास बात क्या है कि यह स्थापित मूर्तियां काफी प्राचीन है जो लगभग छठी शताब्दी की है.
अक्षय वट की यात्रा एक आध्यात्मिक अनुभव है। यहाँ कुछ महत्वपूर्ण बातें हैं जो आप कर सकते हैं:
पवित्र स्नान करें: सबसे पहले त्रिवेणी संगम (गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों का संगम) में पवित्र स्नान करें।
वृक्ष के नीचे प्रार्थना करें: स्नान के बाद अक्षय वट वृक्ष के नीचे प्रार्थना करें। यह माना जाता है कि यहाँ प्रार्थना करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है और इच्छाएं पूर्ण होती हैं।
परिक्रमा करें: वृक्ष की परिक्रमा (प्रदक्षिणा) करें, जिसमें फूल, धूप और प्रार्थना अर्पित करें।
पवित्र धागे बांधें: कई भक्त वृक्ष की शाखाओं पर पवित्र धागे बांधते हैं ताकि उनकी इच्छाओं की पूर्ति हो सके।
ध्यान लगाएं: वृक्ष की छाया में ध्यान लगाएं और आध्यात्मिक उन्नति के लिए समय बिताएं।
परिक्रमा (प्रदक्षिणा): वृक्ष के चारों ओर घड़ी की दिशा में चलते हुए परिक्रमा करें, जिससे सम्मान और भक्ति प्रकट होती है।
प्रार्थना अर्पित करें: दिव्य उपस्थिति को सम्मान देने के लिए प्रार्थना, फूल, और धूप अर्पित करें।
पवित्र धागे बांधें: वृक्ष की शाखाओं पर पवित्र धागे बांधें ताकि आपकी इच्छाओं की पूर्ति हो सके।
मंत्र और भजन गाएं: आध्यात्मिक अनुभव को बढ़ाने के लिए मंत्र और भजनों का पाठ करें।
अक्षय वट मंदिर सुबह 8:00 बजे खुल जाता है और रात्रि 8:00 बजे तक खुला रहता है. लेकिन माघ मेले में यह मंदिर रात में केवल कुछ समय के लिए बंद होता है बाकी दिन भर आयुष श्रद्धालुओं के लिए मंदिर खुला रहता है.
मंकामेश्वर मंदिर (Mankameshwar Temple) प्रयागराज में स्थित एक प्राचीन और पवित्र मंदिर है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और यहाँ पर भक्तगण अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करते हैं। मंदिर के नाम में "मंकामेश्वर" शब्द का अर्थ है "इच्छाओं को पूरा करने वाला भगवान", जिससे यह स्पष्ट होता है कि यह स्थान भक्तों की इच्छाओं को पूरा करने के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
मंकामेश्वर मंदिर का इतिहास प्राचीन समय से जुड़ा हुआ है। यह माना जाता है कि इस मंदिर की स्थापना अति प्राचीन काल में की गई थी और इसके निर्माण के पीछे कई धार्मिक और पौराणिक कथाएँ जुड़ी हुई हैं। यह मंदिर कई शताब्दियों से भक्तों के लिए एक प्रमुख धार्मिक स्थल के रूप में कार्य कर रहा है।
मंकामेश्वर मंदिर का वास्तुकला अत्यंत सुंदर और अद्वितीय है। मंदिर का प्रमुख गर्भगृह भगवान शिव की मूर्ति को समर्पित है। यहाँ पर शिवलिंग स्थापित है, जिसे भक्तजन पूजा और अभिषेक करते हैं। मंदिर के चारों ओर धार्मिक चित्र और मूर्तियाँ हैं, जो हिन्दू धर्म की विभिन्न कहानियों और भगवान शिव की महिमा का वर्णन करती हैं।
मंकामेश्वर मंदिर में नियमित रूप से विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन किया जाता है। यहाँ के कुछ प्रमुख अनुष्ठान इस प्रकार हैं:
शिव पूजा और अभिषेक: प्रतिदिन भगवान शिव की पूजा और अभिषेक किया जाता है। भक्तजन दूध, जल, शहद, और बेलपत्र अर्पित करते हैं।
आरती: प्रतिदिन सुबह और शाम को भगवान शिव की आरती होती है, जिसमें भक्तजन बड़ी संख्या में भाग लेते हैं।
महाशिवरात्रि उत्सव: महाशिवरात्रि के अवसर पर मंदिर में विशेष पूजा और आयोजन होते हैं। इस समय मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ होती है और भजन-कीर्तन का आयोजन किया जाता है।
श्रावण मास: श्रावण मास के दौरान विशेष पूजा और अनुष्ठान होते हैं। इस समय मंदिर में विशेष रूप से शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है।
मंकामेश्वर मंदिर में आने वाले भक्तजन यहाँ कई धार्मिक कार्य कर सकते हैं:
शिवलिंग का अभिषेक: भक्तजन शिवलिंग का अभिषेक कर सकते हैं और भगवान शिव की पूजा कर सकते हैं।
आरती में भाग लेना: सुबह और शाम को होने वाली आरती में भाग लेकर भगवान शिव की आराधना कर सकते हैं।
ध्यान और साधना: मंदिर के शांत वातावरण में ध्यान और साधना कर सकते हैं, जिससे आत्मिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।
दान: मंदिर में दान देकर पुण्य प्राप्त कर सकते हैं। यहाँ पर अन्न, वस्त्र, और धन का दान किया जा सकता है।
मंकामेश्वर मंदिर के आसपास कई अन्य धार्मिक और पर्यटन स्थल भी हैं जिन्हें देखने का अवसर मिल सकता है:
त्रिवेणी संगम: गंगा, यमुना, और पौराणिक सरस्वती नदी का संगम स्थल, जहाँ स्नान करना अत्यंत पवित्र माना जाता है।
अक्षय वट: पवित्र और शाश्वत वट वृक्ष, जहाँ ऋषि मार्कंडेय ने प्रलय के समय शरण ली थी।
इलाहाबाद किला: मुगल सम्राट अकबर द्वारा बनवाया गया किला, जिसमें अशोक स्तंभ और पातालपुरी मंदिर स्थित है।
आलोपी देवी मंदिर: प्राचीन शक्ति पीठ, जहाँ देवी आलोपी की पूजा होती है।
श्री लेटे हनुमान जी मंदिर प्रयागराज के सबसे प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। यह मंदिर त्रिवेणी संगम के पास, इलाहाबाद किले के बगल में स्थित है। यहाँ भगवान हनुमान जी की विशेष मूर्ति लेटी हुई अवस्था (वीर मुद्रा) में स्थापित है, जो इसे अद्वितीय और विशेष बनाती है।
माना जाता है कि श्री लेटे हनुमान जी मंदिर लगभग 700 साल पुराना है। इसके निर्माण और स्थापना की कहानी भी अत्यंत रोचक है। कहानी के अनुसार, कन्नौज के एक धनी व्यक्ति, जो संतानहीन थे, ने विंध्याचल पहाड़ियों से प्राप्त पत्थरों से हनुमान जी की मूर्ति बनवाई। उन्हें एक स्वप्न आया जिसमें उन्हें मूर्ति को संगम पर छोड़ने की सलाह दी गई। उन्होंने ऐसा ही किया और कन्नौज लौटने पर उनकी पत्नी ने पुत्र को जन्म दिया। बाद में, महात्मा बालागिरी ने इस मूर्ति को रेत के नीचे से खोज निकाला और मंदिर की स्थापना की।
मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल में इलाहाबाद किले की दीवारें इस मंदिर के रास्ते में अवरोध पैदा कर रही थीं। अकबर ने मूर्ति को हटाने का प्रयास किया, लेकिन असफल रहे। बाद में, औरंगज़ेब के शासनकाल में, उन्होंने मूर्ति को फेंकने का आदेश दिया, लेकिन सैनिक मूर्ति को हिला भी नहीं सके।
हनुमान जी की इस मूर्ति की विशेषता है कि यह लेटी हुई अवस्था में है। मूर्ति के पैर दक्षिण दिशा में और सिर उत्तर दिशा में है। यह मंदिर भक्तों के लिए एक अद्वितीय स्थल है जहाँ वे अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए आते हैं।
पवित्र स्नान: त्रिवेणी संगम में पवित्र स्नान करें, जो गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों का संगम है।
पूजा और अभिषेक: हनुमान जी की मूर्ति के सामने पूजा और अभिषेक करें।
प्रदक्षिणा: मूर्ति के चारों ओर प्रदक्षिणा (परिक्रमा) करें, जो सम्मान और भक्ति का प्रतीक है।
ध्यान: मंदिर के शांत वातावरण में ध्यान लगाएं और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त करें।
आरती: प्रतिदिन सुबह और शाम को हनुमान जी की आरती होती है, जिसमें भक्तजन बड़ी संख्या में भाग लेते हैं।
हनुमान चालीसा का पाठ: नियमित रूप से हनुमान चालीसा का पाठ किया जाता है।
विशेष पूजा: मंगलवार और शनिवार को विशेष पूजा और आयोजन होते हैं।
श्री लेटे हनुमान जी मंदिर, प्रयागराज का एक प्रमुख धार्मिक स्थल है, जहाँ भक्तजन अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए आते हैं। यहाँ की धार्मिक और आध्यात्मिक वातावरण भक्तों को आकर्षित करती है और उन्हें आत्मिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करती है। यह मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर के रूप में भी विशेष स्थान रखता है।
आलोपी देवी मंदिर प्रयागराज (इलाहाबाद) में स्थित एक प्राचीन और पवित्र शक्ति पीठ है। यह मंदिर मां आलोपी देवी को समर्पित है और यहां देवी की विशेष पूजा होती है। इस मंदिर का नाम "आलोपी" इसलिए पड़ा क्योंकि यहां देवी की प्रतिमा नहीं है, बल्कि एक झूला या डोली स्थापित है, जिसे देवी का प्रतीक माना जाता है।
आलोपी देवी मंदिर का इतिहास अत्यंत प्राचीन है और इससे जुड़ी कई पौराणिक कथाएँ हैं। एक प्रमुख कथा के अनुसार, जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में आत्मदाह कर लिया था, तो भगवान शिव ने सती के शरीर को उठाकर तांडव नृत्य किया। इस दौरान सती के शरीर के अंग विभिन्न स्थानों पर गिरे, जो शक्तिपीठ के रूप में प्रतिष्ठित हुए। माना जाता है कि प्रयागराज में देवी का अंतिम हिस्सा (डोली) गिरा, इसलिए इसे "आलोपी" कहा गया।
मंदिर का वास्तुकला अत्यंत सरल और धार्मिक है। यहाँ देवी की प्रतिमा के स्थान पर एक झूला (डोली) स्थापित है, जिसे श्रद्धालु माँ आलोपी देवी का प्रतीक मानकर पूजा करते हैं। मंदिर के चारों ओर धार्मिक चित्र और मूर्तियाँ हैं, जो हिन्दू धर्म की विभिन्न कहानियों और देवी की महिमा का वर्णन करती हैं।
दैनिक पूजा और आरती: प्रतिदिन मंदिर में देवी की पूजा और आरती होती है। श्रद्धालु भक्ति भाव से शामिल होते हैं।
नवरात्रि उत्सव: नवरात्रि के दौरान यहाँ विशेष पूजा और अनुष्ठान होते हैं। इस समय मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ होती है और देवी की विशेष पूजा की जाती है।
श्रद्धांजलि और अभिषेक: यहाँ नियमित रूप से श्रद्धालु देवी के चरणों में फूल, धूप, और चन्दन अर्पित करते हैं और अभिषेक करते हैं।
पूजा और अभिषेक: मंदिर में जाकर माँ आलोपी देवी की पूजा और अभिषेक करें।
आरती में भाग लें: प्रतिदिन सुबह और शाम को होने वाली आरती में भाग लें और देवी का आशीर्वाद प्राप्त करें।
ध्यान और साधना: मंदिर के शांत वातावरण में ध्यान और साधना करें, जिससे आत्मिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है।
दान: मंदिर में दान देकर पुण्य प्राप्त करें। यहाँ पर अन्न, वस्त्र, और धन का दान किया जा सकता है।
आलोपी देवी मंदिर के आसपास कई अन्य धार्मिक और पर्यटन स्थल भी हैं जिन्हें देखने का अवसर मिल सकता है:
त्रिवेणी संगम: गंगा, यमुना, और पौराणिक सरस्वती नदी का संगम स्थल, जहाँ स्नान करना अत्यंत पवित्र माना जाता है।
अक्षय वट: पवित्र और शाश्वत वट वृक्ष, जहाँ ऋषि मार्कंडेय ने प्रलय के समय शरण ली थी।
इलाहाबाद किला: मुगल सम्राट अकबर द्वारा बनवाया गया किला, जिसमें अशोक स्तंभ और पातालपुरी मंदिर स्थित है।
हनुमान मंदिर: संगम के पास स्थित श्री लेटे हनुमान जी का मंदिर, जहाँ भगवान हनुमान लेटे हुए स्वरूप में विराजमान हैं।
लक्ष्मी नारायण मंदिर (Laxmi Narayan Temple) प्रयागराज का एक प्रमुख धार्मिक स्थल है, जो भगवान विष्णु (नारायण) और उनकी पत्नी देवी लक्ष्मी को समर्पित है। यह मंदिर अपने धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है।
लक्ष्मी नारायण मंदिर का निर्माण कई दशकों पूर्व किया गया था और यह मंदिर धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। यह माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण प्रयागराज के कुछ प्रमुख धार्मिक और सामाजिक व्यक्तियों के सहयोग से हुआ था। मंदिर का वास्तुकला और डिज़ाइन अत्यंत सुंदर और मनमोहक है।
मंदिर की वास्तुकला अत्यंत सुंदर और भव्य है। यहाँ पर भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की मुख्य प्रतिमाएँ स्थापित हैं। मंदिर के गर्भगृह में विष्णु जी की मूर्ति और लक्ष्मी जी की मूर्ति बहुत ही आकर्षक और दिव्य हैं। मंदिर के चारों ओर धार्मिक चित्र और मूर्तियाँ हैं, जो हिन्दू धर्म की विभिन्न कहानियों और भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की महिमा का वर्णन करती हैं।
दैनिक पूजा और आरती: प्रतिदिन मंदिर में भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की पूजा और आरती होती है। श्रद्धालु भक्ति भाव से इसमें शामिल होते हैं।
विशेष त्योहार: दीपावली, जन्माष्टमी, और नवरात्रि के अवसर पर यहाँ विशेष पूजा और अनुष्ठान होते हैं। इन दिनों में मंदिर को विशेष रूप से सजाया जाता है और भजन-कीर्तन का आयोजन किया जाता है।
विष्णु सहस्रनाम का पाठ: यहाँ नियमित रूप से विष्णु सहस्रनाम का पाठ किया जाता है, जिससे भक्तजन भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
अन्नकूट उत्सव: अन्नकूट के अवसर पर यहाँ विशेष भोज और प्रसाद का आयोजन होता है।
पूजा और अभिषेक: मंदिर में जाकर भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की पूजा और अभिषेक करें।
आरती में भाग लें: प्रतिदिन सुबह और शाम को होने वाली आरती में भाग लें और भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करें।
ध्यान और साधना: मंदिर के शांत वातावरण में ध्यान और साधना करें, जिससे आत्मिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है।
दान: मंदिर में दान देकर पुण्य प्राप्त करें। यहाँ पर अन्न, वस्त्र, और धन का दान किया जा सकता है।
ललिता देवी मंदिर (Lalita Devi Temple) प्रयागराज का एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है, जो देवी ललिता (माँ ललिता) को समर्पित है। यह मंदिर हिन्दू धर्म के प्रमुख शक्ति पीठों में से एक है और यहाँ की धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक वातावरण भक्तों को आकर्षित करती है।
ललिता देवी मंदिर का इतिहास बहुत प्राचीन है और इसे 51 शक्ति पीठों में से एक माना जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में आत्मदाह कर लिया था, तो भगवान शिव ने उनके शरीर को उठाकर तांडव नृत्य किया। इस दौरान सती के शरीर के अंग विभिन्न स्थानों पर गिरे, जो शक्तिपीठ के रूप में प्रतिष्ठित हुए। प्रयागराज में देवी सती की उँगलियाँ गिरी थीं, इसलिए इसे शक्ति पीठ के रूप में मान्यता प्राप्त है।
ललिता देवी मंदिर की वास्तुकला बहुत ही आकर्षक और विशिष्ट है। मंदिर का गर्भगृह देवी ललिता की मूर्ति से सुशोभित है। मंदिर के चारों ओर धार्मिक चित्र और मूर्तियाँ हैं, जो हिन्दू धर्म की विभिन्न कहानियों और देवी की महिमा का वर्णन करती हैं। मंदिर का मुख्य द्वार और परिक्रमा पथ भी अत्यंत सुंदर और मनमोहक है।
दैनिक पूजा और आरती: प्रतिदिन मंदिर में देवी ललिता की पूजा और आरती होती है। श्रद्धालु भक्ति भाव से इसमें शामिल होते हैं।
नवरात्रि उत्सव: नवरात्रि के अवसर पर यहाँ विशेष पूजा और अनुष्ठान होते हैं। इस समय मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ होती है और देवी की विशेष पूजा की जाती है।
श्रद्धांजलि और अभिषेक: यहाँ नियमित रूप से श्रद्धालु देवी के चरणों में फूल, धूप, और चन्दन अर्पित करते हैं और अभिषेक करते हैं।
विशेष पूजन विधान: अष्टमी और नवमी के दिन विशेष पूजन और हवन का आयोजन किया जाता है।
पूजा और अभिषेक: मंदिर में जाकर माँ ललिता देवी की पूजा और अभिषेक करें।
आरती में भाग लें: प्रतिदिन सुबह और शाम को होने वाली आरती में भाग लें और देवी का आशीर्वाद प्राप्त करें।
ध्यान और साधना: मंदिर के शांत वातावरण में ध्यान और साधना करें, जिससे आत्मिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है।
दान: मंदिर में दान देकर पुण्य प्राप्त करें। यहाँ पर अन्न, वस्त्र, और धन का दान किया जा सकता है।
नागवासुकि मंदिर प्रयागराज (इलाहाबाद) के दारागंज क्षेत्र में स्थित है, जो गंगा नदी के किनारे स्थित है। यह मंदिर नाग देवता वासुकि को समर्पित है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब देवताओं और असुरों ने समुद्र मंथन किया, तब वासुकि नाग समुद्र मंथन में रस्सी के रूप में उपयोग किए गए थे. इसके बाद वासुकि नाग लहूलुहान हो गए थे, और भगवान विष्णु ने उन्हें प्रयागराज में विश्राम करने का सुझाव दिया. वासुकि नाग का भगवान शिव से भी विशेष संबंध है.
नागवासुकि मंदिर की वास्तुकला साधारण है, लेकिन अत्यंत प्रभावशाली है. मंदिर में वासुकि नाग की मूर्ति स्थापित है, जो श्रद्धापूर्वक सजाया गया है.
दैनिक पूजा और आरती: प्रतिदिन मंदिर में वासुकि नाग की पूजा और आरती होती है।
विशेष पूजन विधान: अष्टमी और नवमी के दिन विशेष पूजन और हवन का आयोजन किया जाता है।
श्रद्धांजलि और अभिषेक: श्रद्धालु वासुकि नाग के चरणों में फूल, धूप, और चन्दन अर्पित करते हैं।
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