परशुराम जयंती हर साल वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। भगवान परशुराम भगवान विष्णु के छठे अवतार माने जाते हैं। उनकी जयंती को अक्षय तृतीया के दिन मनाया जाता है। यह दिन भगवान परशुराम के जीवन, उनके योगदान और उनकी असीम शक्ति का स्मरण करता है।

इतिहास और परशुराम जी का जन्म

परशुराम जी का जन्म सतयुग के अंत और त्रेता युग की शुरुआत में हुआ माना जाता है। वे महर्षि जमदग्नि और देवी रेणुका के पुत्र थे। उनके नाम का अर्थ "परशु" (कुल्हाड़ी) धारण करने वाला है, जो उनके हथियार का प्रतीक है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, परशुराम जी का जन्म धरती पर फैले अन्याय, अधर्म और अत्याचार को समाप्त करने के लिए हुआ। उन्होंने 21 बार पृथ्वी के क्षत्रियों का नाश करके धर्म की स्थापना की। उनका जीवन न केवल वीरता और साहस का प्रतीक है, बल्कि तप और भक्ति का भी उदाहरण है।

परशुराम जयंती कैसे मनाई जाती है?

  1. मंदिरों में पूजा-अर्चना:  परशुराम जयंती के दिन भगवान परशुराम के मंदिरों में भव्य पूजा और यज्ञ का आयोजन किया जाता है।

  2. व्रत और उपवास:  भक्त इस दिन व्रत रखते हैं और भगवान विष्णु और परशुराम जी की आराधना करते हैं।

  3. अक्षय तृतीया का महत्व:  परशुराम जयंती अक्षय तृतीया के दिन पड़ती है, जो धन, समृद्धि और शुभ फल के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है।

  4. दान-पुण्य:  गरीबों और जरूरतमंदों को वस्त्र, भोजन और धन दान करना अत्यंत शुभ माना जाता है।

  5. भजन-कीर्तन और प्रवचन:  भगवान परशुराम की गाथाओं का गायन और धार्मिक प्रवचन का आयोजन किया जाता है।

भगवान परशुराम से जुड़ी प्रमुख कथाएँ

  1. क्षत्रियों का नाश:  पौराणिक कथा के अनुसार, जब क्षत्रियों ने अन्याय और अधर्म का मार्ग अपनाया, तब भगवान परशुराम ने 21 बार पृथ्वी को क्षत्रियों से मुक्त किया और धर्म की स्थापना की।

  2. पितृ भक्ति:  अपने पिता जमदग्नि के आदेश पर परशुराम ने अपनी माता रेणुका का सिर काट दिया। उनकी भक्ति और आज्ञाकारिता से प्रसन्न होकर उनके पिता ने उनकी माता को पुनः जीवित कर दिया।

  3. शिव धनुष का टूटना:  परशुराम जी को भगवान शिव ने परशु और धनुष दिया था। यह वही शिव धनुष है जिसे त्रेता युग में भगवान राम ने तोड़ा था।

  4. क्षत्रिय राजा कार्तवीर्य अर्जुन का वध:  भगवान परशुराम ने अत्याचारी राजा कार्तवीर्य अर्जुन का वध कर पृथ्वी पर शांति स्थापित की।

  5. गोवर्धन पर्वत को उठाना:  परशुराम जी ने अपनी शक्ति और तपस्या से गोवर्धन पर्वत को स्थानांतरित किया।

परशुराम से जुड़े प्रमुख मंदिर

1. परशुराम महादेव मंदिर, राजस्थान

यह मंदिर राजस्थान के पाली जिले में स्थित है। इसे "परशुराम महादेव गुफा मंदिर" भी कहा जाता है।

  • विशेषता: यह मंदिर अरावली पर्वत श्रृंखला में स्थित है और यहाँ एक प्राकृतिक शिवलिंग है।

  • पौराणिक महत्व: कहा जाता है कि भगवान परशुराम ने यहाँ कठोर तपस्या की थी और भगवान शिव से दिव्य धनुष और तीर प्राप्त किया था।

  • आकर्षण: मंदिर तक पहुँचने के लिए 500 सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं। यह स्थान भक्तों के लिए आध्यात्मिक और प्राकृतिक सौंदर्य का संगम है।

2. परशुराम कुंड, अरुणाचल प्रदेश

यह स्थल ब्रह्मपुत्र नदी के पास स्थित है।

  • विशेषता: इसे भगवान परशुराम की तपस्या का प्रतीक माना जाता है।

  • पौराणिक कथा: कहा जाता है कि परशुराम ने यहाँ अपने पापों का प्रायश्चित किया था।

3. परशुराम मंदिर, त्रिवेंद्रम (केरल)

यह मंदिर भगवान परशुराम को समर्पित है।

  • विशेषता: इसे "परशुराम क्षेत्र" भी कहा जाता है।

  • महत्व: यह मंदिर दक्षिण भारत में भगवान परशुराम की भक्ति का प्रमुख केंद्र है।

4. परशुरामेश्वर मंदिर, ओडिशा

यह मंदिर भगवान परशुराम के नाम से प्रसिद्ध है।

  • विशेषता: यह प्राचीन मंदिर उनकी तपस्या और शक्ति का प्रतीक है।

5. श्री परशुराम धाम, चंपारण (गुजरात)

यह मंदिर भगवान परशुराम की वीरता और तपस्या को समर्पित है।

  • महत्व: यहाँ भगवान परशुराम की पूजा बड़े उत्साह से की जाती है।

भगवान परशुराम के प्रमुख मंत्र

  1. ॐ ह्रीं क्लीं श्री परशुरामाय नमः।  महत्व: यह मंत्र भगवान परशुराम की कृपा प्राप्त करने और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा लाने के लिए है।

  2. ॐ विष्णवे परशुरामाय नमः।  महत्व: यह मंत्र भगवान विष्णु के परशुराम रूप को समर्पित है और संकटों से मुक्ति पाने में सहायक है।

  3. ॐ चर्मचारी परशुरामाय नमः।  महत्व: यह मंत्र साहस, बल और तपस्या के प्रतीक भगवान परशुराम को श्रद्धा व्यक्त करता है।

  4. ॐ क्लीं परशुरामाय ह्रीं स्वाहा।  महत्व: इस मंत्र का जाप मानसिक शांति और आध्यात्मिक जागरूकता के लिए किया जाता है।

  5. ॐ रामाय परशुरामाय नमः।  महत्व: भगवान राम और परशुराम के संबंध को दर्शाने वाला यह मंत्र भक्तों को भक्ति और शक्ति प्रदान करता है।

  6. ॐ शिवदूताय परशुरामाय नमः।  महत्व: यह मंत्र भगवान शिव से जुड़े परशुराम जी के चरित्र और तप का प्रतिनिधित्व करता है।

  7. ॐ जयंति परशुरामाय नमः।  महत्व: इस मंत्र का जाप धर्म और न्याय की विजय के लिए किया जाता है।

  8. ॐ परशुशस्त्राय नमः।  महत्व: यह मंत्र भगवान परशुराम के परशु (कुल्हाड़ी) को समर्पित है, जो उनके शक्ति का प्रतीक है।

  9. ॐ महादेवाय परशुरामाय नमः।  महत्व: यह मंत्र भगवान शिव और परशुराम के अद्भुत संबंध को दर्शाता है।

  10. ॐ परशुरामाय धर्मनिष्ठाय नमः।  महत्व: यह मंत्र धर्म की रक्षा और न्याय प्राप्त करने के लिए जपा जाता है।

मंत्र जाप की विधि

इन मंत्रों का जाप सुबह या किसी पवित्र समय पर किया जाता है। श्रद्धा और भक्ति के साथ 108 बार जाप करने से भगवान परशुराम की कृपा प्राप्त होती है। व्रत के दौरान या विशेष पूजा में इन मंत्रों का जाप करना अधिक शुभ माना जाता है।

परशुराम जयंती का महत्व

  1. धर्म और न्याय का प्रतीक:  भगवान परशुराम धर्म की रक्षा और न्याय के प्रतीक हैं। उनका जीवन बताता है कि अधर्म और अन्याय के खिलाफ हमेशा खड़ा होना चाहिए।

  2. भक्ति और तपस्या का उदाहरण:  परशुराम जी की तपस्या और भगवान शिव के प्रति उनकी भक्ति हमें सिखाती है कि दृढ़ विश्वास से किसी भी समस्या का समाधान किया जा सकता है।

  3. अक्षय तृतीया से जुड़ाव:  परशुराम जयंती अक्षय तृतीया के साथ जुड़ी होने के कारण इसे अत्यंत शुभ दिन माना जाता है।

  4. सामाजिक संदेश:  परशुराम जी का जीवन हमें सिखाता है कि शक्ति का उपयोग हमेशा धर्म और न्याय के लिए करना चाहिए।

भगवान परशुराम का जीवन और शिक्षाएँ हमें सिखाती हैं कि कर्म के मार्ग पर चलकर और अधर्म के खिलाफ लड़कर ही एक न्यायपूर्ण समाज का निर्माण किया जा सकता है। परशुराम जयंती पर उनकी गाथाओं को सुनना और उनके आदर्शों को अपनाना हमारे जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकता है।

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