समुद्र मंथन के बारे में शिव पुराण, मत्स्य पुराण, पद्म पुराण, भविष्य पुराण समेत लगभग सभी पुराणों में जिक्र किया गया है। मान्यताओं के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान जब अमृत कलश बाहर आया था तब देवताओं और राक्षसों के बीच तनातनी और संघर्ष को कम करने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार लिया था। इसके बाद जब देवताओं और राक्षसों के बीच संघर्ष काफी ज्यादा बढ़ गया तो उन्होंने इंद्र देव के पुत्र जयंत को यह अमृत कलश सौंप दिया गया। जयंत कौवे का रूप धारण कर राक्षसों से अमृत कलश को छिनकर उड़ चले थे। जब वह घट को लेकर भाग रहे थे तो अमृत कलश से कुछ बूंदे प्रयागराज, उज्जैन , हरिद्वार और नासिक में गिर गई थी। जहां जहां अमृत कलश की बूंदे गिरी वहां-वहां कुंभ मेला का आयोजन किया जाता है।

धन्वंतरि एक दिव्य चिकित्सक और आयुर्वेद के देवता माने जाते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, धन्वंतरि समुद्र मंथन के समय उत्पन्न हुए थे। समुद्र मंथन एक प्रसिद्ध पौराणिक घटना है जिसमें देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र का मंथन किया ताकि अमृत प्राप्त किया जा सके।

समुद्र मंथन की कथा

समुद्र मंथन की इस कथा के अनुसार, देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया। इसके लिए उन्होंने मंदराचल पर्वत को मथनी और वासुकी नाग को रस्सी के रूप में प्रयोग किया। भगवान विष्णु ने कूर्म (कच्छप) अवतार लेकर मंदराचल पर्वत को अपनी पीठ पर धारण किया ताकि पर्वत स्थिर रहे।

मंथन के दौरान, समुद्र से कई दिव्य वस्तुएं और प्राणी उत्पन्न हुए। इनमें से एक था अमृत कलश, जिसमें अमरता का अमृत था। अमृत के साथ ही भगवान धन्वंतरि भी प्रकट हुए, जिनके हाथ में अमृत कलश था।

जयंत, जो भगवान इंद्र के पुत्र थे, उन्हें अमृत कलश की सुरक्षा की जिम्मेदारी सौंपी गई। कथा के अनुसार, असुरों ने अमृत को हथियाने का प्रयास किया, लेकिन जयंत ने अमृत कलश को सुरक्षित रखते हुए असुरों से बचाया।

भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार लेकर अमृत को देवताओं में वितरित किया और असुरों को धोखा दिया। इसके बाद, देवताओं ने अमृत का पान किया और वे अमर हो गए।

समुद्र मंथन प्रक्रिया में कई दिव्य वस्तुएं और प्राणी उत्पन्न हुए। इन सभी में एक था कालकूट विष, जिसे "हलाहल" के नाम से भी जाना जाता है। यह विष इतना विषैला था कि इससे सम्पूर्ण संसार के विनाश की संभावना थी।

कथा के अनुसार, देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया। मंथन के दौरान कई वस्तुएं उत्पन्न हुईं, जैसे कामधेनु गाय, उच्चैःश्रवा घोड़ा, ऐरावत हाथी, पारिजात वृक्ष और लक्ष्मी देवी। अमृत की प्राप्ति से पहले, मंथन के दौरान एक अत्यंत विषैला विष उत्पन्न हुआ जिसे कालकूट विष कहते हैं। यह विष इतना घातक था कि इससे संपूर्ण ब्रह्माण्ड का नाश हो सकता था।

भगवान शिव का विष पान

इस विष के प्रभाव से सृष्टि को बचाने के लिए सभी देवता भगवान शिव के पास गए और उनसे मदद की याचना की। भगवान शिव ने सृष्टि की रक्षा के लिए इस विष को अपने कंठ में धारण करने का निर्णय लिया। उन्होंने विष को पी लिया लेकिन उसे निगला नहीं। भगवान शिव ने विष को अपने कंठ में धारण किया, जिससे उनका कंठ नीला हो गया और उन्हें "नीलकंठ" के नाम से जाना गया।

विष के प्रभाव से भगवान शिव को अत्यंत कष्ट हुआ। इस कष्ट को कम करने के लिए देवी पार्वती ने उनकी सहायता की और उनके कंठ पर हाथ रखा। इसके अलावा, शिव ने विष के प्रभाव को कम करने के लिए गहन तपस्या की और हिमालय में जाकर ध्यान लगाया।

समुद्र मंथन से उत्पन्न सभी महत्वपूर्ण वस्तुओं की सूची दी जा रही है:

  1. हलकल विष - सबसे पहले जो उत्पन्न हुआ वह था कालकूट विष, जिसे हलाहल के नाम से भी जाना जाता है। यह विष अत्यंत विषैला था और इसकी तीव्रता से सृष्टि का नाश हो सकता था। भगवान शिव ने इस विष को पी लिया और इसे अपने कंठ में धारण किया जिससे उनका कंठ नीला हो गया और उन्हें नीलकंठ कहा गया।

  2. कामधेनु - यह दिव्य गाय सभी इच्छाओं को पूर्ण करने वाली थी। इसे ऋषियों ने अपने उपयोग के लिए ग्रहण किया।

  3. उच्चैःश्रवा घोड़ा - यह एक दिव्य और तेजस्वी घोड़ा था जिसे असुरों ने अपने पास रख लिया।

  4. ऐरावत हाथी - यह सफेद रंग का दिव्य हाथी था जिसे भगवान इंद्र ने अपने पास रख लिया।

  5. कौस्तुभ मणि - यह दिव्य रत्न भगवान विष्णु ने अपने कंठ में धारण किया।

  6. कल्पवृक्ष - यह एक दिव्य वृक्ष था जो सभी इच्छाओं को पूर्ण करने वाला था। इसे स्वर्गलोक में स्थापित किया गया।

  7. रंभा अप्सरा - यह एक दिव्य अप्सरा थी जो स्वर्गलोक की शोभा बढ़ाने के लिए उत्पन्न हुई।

  8. वारुणी देवी - यह मदिरा की देवी थीं जिन्हें असुरों ने ग्रहण किया।

  9. चन्द्रमा - चन्द्रमा को भगवान शिव ने अपने मस्तक पर धारण किया।

  10. लक्ष्मी देवी - यह धन और समृद्धि की देवी थीं जो भगवान विष्णु की पत्नी बनीं।

  11. शंख - यह दिव्य शंख था जिसे भगवान विष्णु ने धारण किया।

  12. धन्वंतरि - यह आयुर्वेद के देवता और दिव्य चिकित्सक थे जो अमृत कलश के साथ उत्पन्न हुए।

  13. अमृत कलश - अंत में अमृत कलश उत्पन्न हुआ जिसे देवताओं और असुरों के बीच विवाद के बाद भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार लेकर देवताओं में वितरित किया।

प्रयागराज (इलाहाबाद) में कई धार्मिक मंदिर हैं जो अपनी अनूठी महत्वता और इतिहास के लिए प्रसिद्ध हैं। यहाँ प्रमुख मंदिरों का विवरण दिया गया है:

श्री बड़े हनुमान जी मंदिर (Shri Bade Hanuman Ji Temple)

स्थान: त्रिवेणी संगम के पासविवरण: यह मंदिर भगवान हनुमान की विशाल मूर्ति के लिए प्रसिद्ध है। यह मूर्ति अद्वितीय है क्योंकि हनुमान जी यहाँ लेटे हुए स्वरूप में विराजमान हैं। मॉनसून के दौरान यह मूर्ति आंशिक रूप से जलमग्न हो जाती है, जिससे इस स्थान का महत्व और भी बढ़ जाता है।

पतलपुरी मंदिर (Patalpuri Temple)

स्थान: इलाहाबाद किले के अंदरविवरण: यह मंदिर इलाहाबाद किले के भीतर स्थित है। यहाँ पर अक्षयवट (अमर बरगद का पेड़) भी है, जो पवित्र माना जाता है और मोक्ष प्रदान करने की शक्ति रखता है।

आलोपी देवी मंदिर (Alopi Devi Temple)

स्थान: अलोपीबाग क्षेत्रविवरण: यह प्राचीन शक्ति पीठ माँ आलोपी देवी को समर्पित है। यहाँ पर कोई मूर्ति नहीं होती, बल्कि एक लकड़ी की गाड़ी को देवी का प्रतीक माना जाता है।

नाग वासुकी मंदिर (Nag Vasuki Temple)

स्थान: दारागंज, गंगा नदी के पासविवरण: यह मंदिर नागों के राजा नाग वासुकी को समर्पित है। यहाँ भगवान शिव और देवी पार्वती के भी मंदिर हैं।

ललिता देवी मंदिर (Lalita Devi Temple)

स्थान: मीरापुर क्षेत्रविवरण: यह मंदिर देवी ललिता को समर्पित है और इसे 51 शक्ति पीठों में से एक माना जाता है। इस मंदिर में विशेष रूप से समृद्धि और सुख की प्राप्ति के लिए पूजा की जाती है।

शंकर विमान मंदिपम (Shankar Viman Mandapam)

स्थान: संगम के पासविवरण: यह दक्षिण भारतीय शैली का विशाल मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। इसकी चार मंजिला संरचना इसे प्रयागराज का प्रमुख स्थल बनाती है।

कल्याणी देवी मंदिर (Kalyani Devi Temple)

स्थान: कल्याणी देवी क्षेत्रविवरण: यह भी एक शक्ति पीठ है और देवी कल्याणी को समर्पित है। नवरात्रि के दौरान यहाँ विशेष पूजा और आयोजन होते हैं।

दशाश्वमेध मंदिर (Dashashwamedh Temple)

स्थान: संगम के पासविवरण: यह मंदिर उन दस अश्वमेध यज्ञों से जुड़ा हुआ है जो भगवान ब्रह्मा ने यहाँ किए थे। यह स्थल आध्यात्मिक शुद्धिकरण के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।

सोमेश्वर महादेव मंदिर (Someshwar Mahadev Temple)

स्थान: यमुना के किनारेविवरण: यह प्राचीन मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और महाशिवरात्रि के दौरान विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है।

हनुमान मंदिर सिविल लाइन्स (Hanuman Mandir Civil Lines)

स्थान: सिविल लाइन्स क्षेत्रविवरण: यह मंदिर भी भगवान हनुमान को समर्पित है और यहाँ का वातावरण शांति और सौम्यता से भरा होता है।

पंचमुखी हनुमान मंदिर (Panchmukhi Hanuman Temple)

स्थान: इलाहाबाद के व्यस्त इलाके में स्थितविवरण: यह मंदिर भगवान हनुमान के पंचमुखी (पांच मुख) स्वरूप को समर्पित है। यह स्थान अपनी वास्तुकला और धार्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है।

मनकामेश्वर मंदिर (Mankameshwar Temple)

स्थान: यमुना नदी के तट पर स्थितविवरण: यह प्राचीन मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। इस मंदिर में विशेष रूप से सावन मास के दौरान श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है।

लक्ष्मी नारायण मंदिर (Laxmi Narayan Temple)

स्थान: सिविल लाइन्स क्षेत्र मेंविवरण: यह मंदिर भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी को समर्पित है। यहाँ पर दिवाली और अन्य त्योहारों के दौरान विशेष पूजा और आयोजन होते हैं।

सरस्वती घाट मंदिर (Saraswati Ghat Temple)

स्थान: संगम के पास स्थितविवरण: यह मंदिर देवी सरस्वती को समर्पित है और यहाँ पर भक्तजन पवित्र नदी में स्नान करते हैं। यह स्थान धार्मिक और आध्यात्मिक शांति के लिए महत्वपूर्ण है।

भारद्वाज मंदिर (Bharadwaj Temple)

स्थान: दारागंज क्षेत्र मेंविवरण: यह मंदिर ऋषि भारद्वाज को समर्पित है। यहाँ पर धार्मिक अनुष्ठान और साधना के लिए श्रद्धालु आते हैं।

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