इंदिरा एकादशी हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। यह व्रत पितरों के उद्धार और उनकी मुक्ति के लिए विशेष रूप से किया जाता है। मान्यता है कि इस दिन विधिपूर्वक व्रत और पूजा करने से न केवल व्यक्ति के पापों का नाश होता है, बल्कि पितृदोष भी दूर होते हैं और पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
1. इंदिरा एकादशी का इतिहास
इंदिरा एकादशी का व्रत विशेष रूप से पितरों के उद्धार के लिए किया जाता है। यह व्रत उन लोगों के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है, जो अपने पूर्वजों की मुक्ति की कामना करते हैं। यह व्रत विशेष रूप से वैकुंठ की प्राप्ति के लिए किया जाता है और भगवान विष्णु की आराधना का दिन होता है।
हिन्दू धर्म के अनुसार, आश्विन मास में आने वाली इस एकादशी का पालन करने से व्यक्ति को पितृलोक में रहने वाले पितरों के उद्धार का अवसर प्राप्त होता है। इस दिन व्रत और पूजा करने से पितरों के लिए स्वर्ग के द्वार खुल जाते हैं और वे अपने जन्म-मरण के बंधनों से मुक्त हो जाते हैं।
2. इंदिरा एकादशी की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, सत्ययुग में महिष्मति नगरी में एक धर्मात्मा राजा इन्द्रसेन राज्य करते थे। वह भगवान विष्णु के परम भक्त थे और प्रजा का भली प्रकार से पालन करते थे। एक दिन राजा इन्द्रसेन अपने राजमहल में सभा कर रहे थे, तभी देवऋषि नारद जी आकाश मार्ग से उनके महल में आए। राजा ने उन्हें देखकर उनका स्वागत किया और उनसे आने का कारण पूछा।
नारद जी ने कहा, "हे राजन! मैं तुम्हारे पितरों से मिलने यमलोक गया था। वहां मुझे ज्ञात हुआ कि तुम्हारे पिता को पितृलोक में स्थान मिला है, लेकिन उनके पिछले जन्म के कुछ पापों के कारण उन्हें मुक्ति नहीं मिल पाई है। उन्होंने मुझे संदेश दिया है कि यदि तुम इंदिरा एकादशी का व्रत विधिपूर्वक करो, तो तुम्हारे पितरों को मुक्ति मिल जाएगी।"
यह सुनकर राजा इन्द्रसेन ने नारद जी की बातों का पालन करने का निर्णय लिया। उन्होंने नारद जी से इंदिरा एकादशी व्रत की विधि जानकर उसका पालन किया। व्रत और पूजा के प्रभाव से उनके पितर को स्वर्गलोक प्राप्त हुआ। इस प्रकार इंदिरा एकादशी व्रत का महत्व स्थापित हुआ।
3. इंदिरा एकादशी के अनुष्ठान (व्रत विधि)
इंदिरा एकादशी के दिन व्रत और पूजा विधिपूर्वक की जाती है। इस व्रत में भगवान विष्णु की पूजा और पितरों के तर्पण का विशेष महत्व है। व्रत करने वाले व्यक्ति को पवित्रता और सादगी का पालन करना चाहिए।
व्रत की तैयारी:
स्नान: एकादशी के दिन प्रातःकाल सूर्योदय से पहले स्नान करें। यदि संभव हो तो पवित्र नदी या कुंड में स्नान करें, अन्यथा घर में स्नान के जल में गंगा जल मिलाएं।
व्रत का संकल्प: स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें और भगवान विष्णु के समक्ष व्रत का संकल्प लें। "ओम नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जाप करें और व्रत का पालन करने की प्रतिज्ञा करें।
पूजा विधि:
भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र को पीले वस्त्र में स्थापित करें और दीप जलाकर उनकी आराधना करें।
भगवान को पीले फूल, तुलसी दल, और पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और शक्कर) अर्पित करें।
विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें या "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का 108 बार जाप करें।
पितरों का तर्पण: पितरों के उद्धार के लिए पिंडदान और तर्पण करें। तर्पण के लिए पवित्र जल, तिल, और कुश का उपयोग करें।
प्रसाद वितरण: पूजा के बाद प्रसाद को सभी परिवारजनों में वितरित करें और स्वयं भी ग्रहण करें। इस दिन सात्विक भोजन का पालन करें।
रात्रि जागरण:
इंदिरा एकादशी की रात को जागरण करना अत्यंत फलदायक माना गया है। रात्रि में भगवान विष्णु के भजन-कीर्तन करें और उनकी महिमा का गुणगान करें।
4. इंदिरा एकादशी का महत्व
पितृ दोष निवारण: इंदिरा एकादशी व्रत पितृ दोष को समाप्त करने के लिए अत्यंत प्रभावशाली माना जाता है। इसे करने से पितरों को मुक्ति मिलती है और उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है।
विष्णु भक्ति: इस व्रत के दौरान भगवान विष्णु की आराधना से जीवन में सुख, समृद्धि और शांति की प्राप्ति होती है।
मोक्ष की प्राप्ति: मान्यता है कि जो व्यक्ति इस व्रत को करता है, उसे मृत्यु के बाद वैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है।
संतान सुख: इस व्रत का पालन करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है और संतान की उन्नति होती है।
5. इंदिरा एकादशी से जुड़े प्रमुख मंदिर
तिरुपति बालाजी मंदिर (आंध्र प्रदेश): भगवान विष्णु का यह प्रमुख मंदिर इंदिरा एकादशी के दिन विशेष पूजा और अनुष्ठानों का आयोजन करता है।
जगन्नाथ मंदिर (पुरी, ओडिशा): इस दिन भगवान जगन्नाथ की विशेष पूजा अर्चना की जाती है और भव्य अनुष्ठानों का आयोजन होता है।
बद्रीनाथ मंदिर (उत्तराखंड): भगवान विष्णु के इस पवित्र धाम में इंदिरा एकादशी पर व्रतधारियों की भारी भीड़ उमड़ती है और विशेष पूजा का आयोजन होता है।
वैकुंठनाथ मंदिर (कर्नाटक): इंदिरा एकादशी के दिन यहां भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए विभिन्न प्रकार के अनुष्ठान किए जाते हैं।
6. इंदिरा एकादशी के मंत्र
इंदिरा एकादशी के दिन भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए कुछ विशेष मंत्रों का जाप किया जाता है। ये मंत्र पितरों के उद्धार और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
विष्णु मंत्र:
"ॐ नमो भगवते वासुदेवाय"
“ॐ विष्णवे नमः”
“ॐ नारायणाय नमः”
“हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे,हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे।”
इस मंत्र का जाप करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और पापों से मुक्ति मिलती है।
विष्णु सहस्रनाम स्तोत्र:
विष्णु सहस्रनाम का पाठ इंदिरा एकादशी के दिन अत्यंत फलदायक माना जाता है। यह 1000 नामों वाला स्तोत्र भगवान विष्णु के गुणों का बखान करता है और इसे पढ़ने से व्यक्ति की सभी समस्याओं का समाधान होता है।
गायत्री मंत्र:
"ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यम् भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।"
गायत्री मंत्र का जाप करने से मानसिक शांति प्राप्त होती है और व्यक्ति को जीवन में सफलताएँ प्राप्त होती हैं।
7. इंदिरा एकादशी का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व
इंदिरा एकादशी व्रत न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह आध्यात्मिक उन्नति के लिए भी अत्यधिक लाभकारी है। इस व्रत के माध्यम से व्यक्ति अपने पितरों के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करता है और उनके उद्धार के लिए प्रयास करता है। इसके साथ ही, यह व्रत भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने का सशक्त माध्यम है, जो जीवन के सभी कष्टों को समाप्त कर सुख और समृद्धि प्रदान करता है।
एकादशी हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र तिथि मानी जाती है। यह दिन भगवान विष्णु की आराधना के लिए समर्पित है और इसे हर महीने के शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की ग्यारहवीं तिथि को मनाया जाता है। धर्मग्रंथों में एकादशी का उल्लेख भगवान विष्णु के प्रिय दिन के रूप में किया गया है, जिसमें व्रत और उपवास का पालन कर व्यक्ति पापों से मुक्ति प्राप्त कर सकता है और मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है।
एकादशी के बारे में कई पुराणों, श्रीमद्भागवत और अन्य धार्मिक ग्रंथों में विस्तार से जानकारी दी गई है। इन ग्रंथों के अनुसार, एकादशी व्रत करने से मनुष्य के समस्त पाप समाप्त हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
1. एकादशी का महत्व: पुराणों में वर्णन
(क) पद्म पुराण में एकादशी
पद्म पुराण में एकादशी व्रत का विशेष उल्लेख है। इसमें कहा गया है कि एकादशी का पालन करने से व्यक्ति को सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है। एक कथा के अनुसार, भगवान विष्णु ने एकादशी तिथि को स्वयं प्रकट किया था। उन्होंने कहा था कि इस दिन उपवास करने से व्यक्ति के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
पद्म पुराण के अनुसार, एकादशी व्रत करने से सभी यज्ञों, दानों, और तपों के समान फल प्राप्त होता है। साथ ही, इस तिथि पर भगवान विष्णु का स्मरण करने से व्यक्ति को उनके धाम में स्थान प्राप्त होता है।
(ख) ब्रह्मवैवर्त पुराण में एकादशी
ब्रह्मवैवर्त पुराण में एकादशी को भगवान विष्णु की शक्ति और माया का प्रतीक बताया गया है। इसमें उल्लेख है कि एकादशी के दिन व्रत करने से व्यक्ति को अपने सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है। इसके अलावा, ब्रह्मवैवर्त पुराण में कहा गया है कि जो लोग नियमित रूप से एकादशी का पालन करते हैं, वे अपने समस्त पापों से मुक्त होकर विष्णु लोक को प्राप्त करते हैं।
(ग) स्कंद पुराण में एकादशी
स्कंद पुराण में एकादशी के व्रत को मोक्ष प्राप्ति का साधन माना गया है। इसमें लिखा है कि एकादशी के दिन व्रत और पूजा करने से व्यक्ति के पितृ दोष समाप्त हो जाते हैं और पितरों को स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है। स्कंद पुराण के अनुसार, जो व्यक्ति पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ एकादशी का व्रत करता है, वह जीवन के सभी कष्टों से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करता है।
2. श्रीमद्भागवत में एकादशी का महत्व
श्रीमद्भागवत महापुराण में भी एकादशी का विशेष वर्णन किया गया है। इसमें कहा गया है कि एकादशी व्रत करने से मनुष्य के जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। श्रीमद्भागवत में भगवान कृष्ण ने स्वयं कहा है कि एकादशी का व्रत मेरे प्रिय है और इसे करने से भक्त मेरी विशेष कृपा के पात्र बनते हैं।
भागवत पुराण में एकादशी को मोक्ष प्राप्ति का सर्वोत्तम साधन माना गया है। एकादशी व्रत को लेकर कई कथाएँ भी भागवत पुराण में मिलती हैं। इनमें से एक कथा राजा अम्बरीष की है, जिन्होंने एकादशी का व्रत किया था और उनकी भक्ति और व्रत के प्रभाव से भगवान विष्णु स्वयं उनकी रक्षा के लिए प्रकट हुए थे।
3. महाभारत में एकादशी का उल्लेख
महाभारत के अनुशासन पर्व में भी एकादशी व्रत का महत्व बताया गया है। भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को एकादशी व्रत का महत्व बताया था और कहा था कि एकादशी का व्रत करने से मनुष्य के सभी प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष की प्राप्ति होती है। भीष्म पितामह ने यह भी कहा था कि जो व्यक्ति एकादशी के दिन अन्न का त्याग करता है, वह अपने जीवन की सभी समस्याओं से मुक्त होता है।
महाभारत में एकादशी को विशेष रूप से ध्यान, भक्ति, और शुद्धता के दिन के रूप में वर्णित किया गया है। इस दिन उपवास करके भगवान विष्णु की आराधना करना अत्यधिक फलदायक माना गया है।
4. गरुड़ पुराण में एकादशी का महत्व
गरुड़ पुराण में भी एकादशी व्रत का विस्तृत वर्णन है। इसमें कहा गया है कि एकादशी व्रत करने से व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसे यमलोक नहीं जाना पड़ता है, बल्कि उसे विष्णुलोक की प्राप्ति होती है। गरुड़ पुराण के अनुसार, जो व्यक्ति एकादशी व्रत करता है, उसके पितरों को स्वर्ग की प्राप्ति होती है और वे अपने पापों से मुक्त होते हैं।
गरुड़ पुराण में यह भी उल्लेख है कि एकादशी के दिन ध्यान, भक्ति और शुद्ध आहार का पालन करना चाहिए। इस दिन अन्न का त्याग करके केवल फल और जल का सेवन करना उचित होता है।
5. विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में एकादशी के प्रकार
धार्मिक ग्रंथों में एकादशी के कई प्रकार बताए गए हैं। हर महीने के शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में एकादशी आती है, जो विभिन्न नामों से जानी जाती हैं। प्रमुख एकादशियों में निम्नलिखित शामिल हैं:
निर्जला एकादशी: यह सबसे कठिन और विशेष व्रत माना जाता है। इसमें जल का भी सेवन नहीं किया जाता।
देवशयनी एकादशी: इस दिन से भगवान विष्णु चार महीने के लिए योगनिद्रा में जाते हैं।
वैशाखी एकादशी: यह एकादशी वैशाख माह में आती है और विशेष रूप से पुण्यदायी मानी जाती है।
कामदा एकादशी: यह कामनाओं की पूर्ति के लिए की जाने वाली एकादशी मानी जाती है।
इंदिरा एकादशी का व्रत पितरों के उद्धार के साथ-साथ भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने के लिए किया जाता है। इस व्रत को पूर्ण श्रद्धा और विधि-विधान से करने से व्यक्ति को अपने जीवन की समस्याओं से मुक्ति मिलती है, और पितृ दोष भी समाप्त होते हैं। इस एकादशी का महत्व केवल पितरों की मुक्ति तक सीमित नहीं है, बल्कि यह व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास और जीवन में शांति व समृद्धि की प्राप्ति का भी मार्ग है।
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