हरतालिका तीज भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जिसे विशेष रूप से उत्तर भारत में महिलाएं बहुत श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाती हैं। यह त्योहार मुख्य रूप से भगवान शिव और माता पार्वती के पावन विवाह और माता पार्वती द्वारा किए गए कठोर तपस्या को सम्मानित करने के लिए मनाया जाता है। हरतालिका तीज का नाम ‘हर’ और ‘तालिका’ से मिलकर बना है, जिसका अर्थ होता है – हरने वाली सखी और वह जो सखी के रूप में माता पार्वती को भगवान शिव के पास ले गई। इस त्योहार का मुख्य उद्देश्य महिलाओं द्वारा पति की लंबी उम्र और समृद्धि की कामना करना है।
हरतालिका तीज मुख्य रूप से भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है, जो अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार अगस्त-सितंबर के महीनों में आती है।
हरतालिका तीज का पौराणिक संदर्भ माता पार्वती और भगवान शिव से जुड़ा हुआ है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी। उनका तप इतना कठोर था कि उन्होंने वर्षों तक जल और भोजन त्याग कर केवल ध्यान और उपवास से भगवान शिव की आराधना की। उनके इस दृढ़ संकल्प को देखकर भगवान शिव प्रसन्न हुए और उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार किया। इस कारण से हरतालिका तीज पर महिलाएं माता पार्वती के तप और भक्ति का स्मरण करती हैं और अपने पति की दीर्घायु, सुख-समृद्धि और स्वस्थ जीवन की कामना करती हैं।
हरतालिका तीज की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, माता पार्वती के पिता हिमालय ने भगवान विष्णु से उनकी शादी तय कर दी थी, लेकिन माता पार्वती ने मन में भगवान शिव को ही पति रूप में स्वीकार किया था। उन्होंने बचपन से ही भगवान शिव को पाने के लिए तपस्या शुरू कर दी थी। जब उनके पिता ने उनकी शादी भगवान विष्णु से तय की, तो माता पार्वती की सखी उन्हें जंगल ले गई, ताकि वह अपनी तपस्या को जारी रख सकें और भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त कर सकें। माता पार्वती की भक्ति और तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न हुए और उन्होंने उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार किया।
हरतालिका तीज का मुख्य उद्देश्य महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना करना है। यह व्रत केवल विवाहित महिलाओं के लिए ही नहीं, बल्कि कुंवारी कन्याओं के लिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि इस व्रत के माध्यम से वे अच्छे पति की प्राप्ति की प्रार्थना करती हैं। हरतालिका तीज का व्रत अत्यंत कठिन माना जाता है क्योंकि इसमें जल और अन्न का सेवन नहीं किया जाता। महिलाएं इस व्रत को अपार श्रद्धा और भक्ति के साथ रखती हैं।
हरतालिका तीज का व्रत न केवल पति की लंबी उम्र और समृद्धि की कामना से जुड़ा है, बल्कि यह महिलाओं के आत्म-संयम, धैर्य और आस्था का प्रतीक भी है। यह त्योहार समाज में पारिवारिक संबंधों को मजबूत करने और जीवनसाथी के प्रति समर्पण को बढ़ाने का संदेश देता है।
हरतालिका तीज व्रत को रखने के लिए महिलाएं पूरी तैयारी और भक्ति से व्रत करती हैं। व्रत का पालन करते समय निम्नलिखित विधियों का ध्यान रखा जाता है।
इस व्रत की पात्र कुमारी कन्याएँ व सुहागिन महिलाएँ दोनों ही हैं परन्तु एक बार व्रत रखने उपरांत जीवन पर्यन्त इस व्रत को रखना पड़ता है। यदि व्रती महिला गंभीर रोगी स्थिति में हो तो उसके स्थान पर दूसरी महिला व उसका पति भी इस व्रत को रख सकने का विधान है। अधिकतर यह व्रत पूर्वी उत्तरप्रदेश और बिहार के लोग मनातें हैं । महाराष्ट्र में भी इस व्रत का पालन किया जाता है क्योंकि अगले दिन ही गणेश चतुर्थी के दिन गणेश स्थापना की जाती है।
इस व्रत के व्रती को शयन का निषेध है, इसके लिए उसे रात्रि में भजन कीर्तन के साथ रात्रि जागरण करना पड़ता है। प्रातः काल स्नान करने के पश्चात् श्रद्धा एवम भक्ति पूर्वक किसी सुपात्र सुहागिन महिला को श्रृंगार सामग्री ,वस्त्र ,खाद्य सामग्री ,फल ,मिष्ठान्न एवम यथा शक्ति आभूषण का दान करना चाहिए। यह व्रत बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है । प्रत्येक सौभाग्यवती स्त्री इस व्रत को रखने में अपना परम सौभाग्य समझती है ।:
व्रत के दिन प्रातःकाल स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण किए जाते हैं। महिलाएं इस दिन विशेष रूप से हरे रंग के वस्त्र धारण करती हैं, जो समृद्धि और खुशहाली का प्रतीक माना जाता है।
स्नान और शुद्धि के बाद महिलाएं व्रत का संकल्प लेती हैं। संकल्प का मतलब होता है अपने मन में यह निश्चय करना कि वे इस व्रत को पूर्ण श्रद्धा और भक्ति के साथ निभाएंगी। व्रत का संकल्प लेते समय भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश का ध्यान किया जाता है।
व्रत के दिन भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश की मूर्तियों या चित्रों को एक साथ रखकर उनकी पूजा की जाती है। पूजा के दौरान देवी पार्वती को विशेष रूप से सजाया जाता है, और उन्हें सुहाग सामग्री (चूड़ियाँ, सिंदूर, बिंदी आदि) अर्पित की जाती है। महिलाएं विशेष रूप से मिट्टी की शिवलिंग बनाकर उसकी पूजा करती हैं।
हरतालिका तीज की पूजा के लिए मुख्य पूजा सामग्री में शामिल होते हैं –
मिट्टी की शिवलिंग,
माता पार्वती और गणेश जी की प्रतिमा,
फल-फूल,
धूप-दीप,
चंदन,
अक्षत (चावल),
सुहाग सामग्री (चूड़ियाँ, बिंदी, सिंदूर),
बेलपत्र,
दूध,
दही,
शहद,
घी,
जल और पंचामृत।
हरतालिका तीज के दिन व्रती महिलाएं हरतालिका तीज की कथा का श्रवण करती हैं। इस कथा को सुनने के बाद महिलाएं भगवान शिव और माता पार्वती से अपने व्रत को सफल बनाने और अपने परिवार की रक्षा की प्रार्थना करती हैं।
हरतालिका तीज के दिन महिलाएं रात भर जागरण करती हैं और भगवान शिव और माता पार्वती का ध्यान करती हैं। जागरण के दौरान भजन, कीर्तन और शिव-पार्वती की कथाओं का पाठ किया जाता है। इसका उद्देश्य है कि रात भर जागकर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा अर्चना करें और उनके आशीर्वाद की प्राप्ति करें।
अगले दिन सुबह स्नान के बाद पूजा अर्चना करके व्रत का पारण किया जाता है। पारण के दौरान महिलाएं भगवान शिव और माता पार्वती को अर्पित प्रसाद को ग्रहण करती हैं और अपने परिवार के साथ भोजन करती हैं।
हरतालिका तीज न केवल एक धार्मिक व्रत है, बल्कि यह समाज में महिलाओं के समर्पण, संयम और आस्था का प्रतीक भी है। यह त्योहार परिवार और समाज के बीच संबंधों को मजबूत करता है। पति-पत्नी के बीच प्रेम, विश्वास और समर्पण की भावना को बढ़ावा देता है। विवाहित महिलाएं इस दिन एक-दूसरे के साथ मिलकर पूजा करती हैं, जिससे उनके बीच सामुदायिक भावना और प्रेम बढ़ता है।
महिलाओं की सजावट और श्रृंगार:हरतालिका तीज के दिन महिलाएं विशेष रूप से सज-संवर कर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती हैं। सुहागिन महिलाएं इस दिन अपने सुहाग का विशेष ध्यान रखती हैं और चूड़ियाँ, बिंदी, सिंदूर, मेंहदी और अन्य सुहाग सामग्री का प्रयोग करती हैं। इसके अलावा, इस दिन मेंहदी लगाने का भी विशेष महत्व होता है, जो सुहाग और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
समाज में एकता और भक्ति:हरतालिका तीज के दिन महिलाएं एक साथ मिलकर पूजा करती हैं, जिससे समाज में एकता और भक्ति की भावना का विकास होता है। यह त्योहार धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखने और आने वाली पीढ़ियों को उसकी महत्ता समझाने का भी एक महत्वपूर्ण साधन है।
हरतालिका तीज के दिन विभिन्न अनुष्ठान और परंपराओं का पालन किया जाता है। यह त्योहार विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है, लेकिन कुछ प्रमुख अनुष्ठान और परंपराएँ निम्नलिखित हैं:
महिलाएं इस दिन विशेष रूप से मेंहदी लगाती हैं और सुंदर श्रृंगार करती हैं। यह सुहाग और समृद्धि का प्रतीक होता है। मेंहदी का रंग जितना गहरा होता है, उतना ही सुहाग का महत्व बढ़ता है, ऐसा माना जाता है।
रात्रि के समय जागरण का आयोजन किया जाता है, जिसमें महिलाएं एक साथ मिलकर भजन-कीर्तन करती हैं और भगवान शिव और माता पार्वती की महिमा का गुणगान करती हैं।
विवाहित महिलाएं इस दिन सुहाग सामग्री (चूड़ियाँ, बिंदी, सिंदूर, कपड़े आदि) का दान करती हैं। यह दान सुहाग की दीर्घायु और समृद्धि के लिए किया जाता है।
हरतालिका तीज के अवसर पर पारंपरिक गीत गाए जाते हैं, जो मुख्य रूप से पति की दीर्घायु और सुहागिन के सौभाग्य की कामना के लिए होते हैं। इन गीतों में पारंपरिक कथाएँ और भगवान शिव-पार्वती की प्रेम कथा का भी उल्लेख होता है।
हरतालिका तीज न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि इसका स्वास्थ्य और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी विशेष महत्व है। इस व्रत के दौरान महिलाएं अपने शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए संयम और भक्ति का पालन करती हैं।
हरतालिका तीज के व्रत का पालन करने से मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धि प्राप्त होती है। यह व्रत महिलाओं को आत्म-संयम, धैर्य और भक्ति के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।
व्रत के दौरान पूजा, ध्यान और कीर्तन करने से मानसिक शांति और ध्यान केंद्रित करने की क्षमता में सुधार होता है। यह महिलाओं को तनाव मुक्त रहने में भी मदद करता है।
इस व्रत में उपवास करने से शरीर को शुद्ध करने का अवसर मिलता है। जल और अन्न का त्याग करने से शरीर में शुद्धि और स्वास्थ्य को लाभ मिलता है। हालांकि, यह व्रत केवल स्वस्थ महिलाओं को ही करना चाहिए और अगर किसी को स्वास्थ्य संबंधी समस्या हो, तो उसे चिकित्सक की सलाह के अनुसार व्रत का पालन करना चाहिए।
हरतालिका तीज का पर्यावरण से भी गहरा संबंध है। इस दिन महिलाएं वृक्षों और प्राकृतिक तत्वों की पूजा करती हैं। यह त्योहार प्राकृतिक संरक्षण और पर्यावरण के प्रति जागरूकता का भी प्रतीक है।
हरतालिका तीज पर व्रती महिलाएं पीपल, बरगद, और तुलसी के वृक्ष की पूजा करती हैं। यह पूजा प्रकृति और पर्यावरण के प्रति सम्मान और आभार व्यक्त करने का एक तरीका है।
पूजा में प्रयुक्त सामग्री जैसे फूल, पत्तियाँ, मिट्टी के शिवलिंग आदि प्राकृतिक होती हैं। इससे न केवल पर्यावरण की सुरक्षा होती है, बल्कि यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि कोई भी हानिकारक रसायन या प्लास्टिक का उपयोग न हो।
हरतालिका तीज का उत्सव भारत के विभिन्न राज्यों में विभिन्न रूपों में मनाया जाता है। अलग-अलग क्षेत्रों में इस व्रत को लेकर अलग-अलग परंपराएं और मान्यताएँ हैं।
उत्तर प्रदेश, बिहार, और राजस्थान में हरतालिका तीज का व्रत बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। यहाँ की महिलाएं विशेष रूप से सुहाग सामग्री का दान करती हैं और रात भर जागरण करती हैं।
महाराष्ट्र और गुजरात में इस व्रत को ‘हरितालिका’ कहा जाता है और यहाँ भी इसे सुहागिन महिलाएं विशेष भक्ति और श्रद्धा के साथ मनाती हैं। यहाँ महिलाएं विशेष रूप से हरे रंग के वस्त्र धारण करती हैं।
आसाम और ओडिशा में हरतालिका तीज का महत्व विवाहित और अविवाहित महिलाओं दोनों के लिए होता है। यहाँ महिलाएं इस दिन विशेष पूजा और उपवास करती हैं।
आधुनिक समय में भी हरतालिका तीज का महत्व और प्रासंगिकता बनी हुई है। यह त्योहार परिवार, विवाह और समाज के पारंपरिक मूल्यों को सुदृढ़ करने का एक माध्यम है। हरतालिका तीज महिलाओं के मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक विकास के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है।
इसके अलावा, हरतालिका तीज महिलाओं को सामूहिक रूप से अपने समाज, परिवार और पति के प्रति समर्पण की भावना का विकास करने का अवसर प्रदान करता है। आधुनिक समाज में भी इस त्योहार को नए आयामों के साथ मनाया जा रहा है, जहां महिलाएं अपने परिवार के साथ मिलकर इसे आधुनिक तकनीक और संसाधनों का उपयोग करके भी धूमधाम से मना रही हैं।
हरतालिका तीज भारतीय संस्कृति और परंपरा का एक अद्वितीय पर्व है, जो महिलाओं के समर्पण, धैर्य और आस्था को प्रकट करता है। यह व्रत न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसका सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व भी अत्यधिक है। महिलाओं के लिए यह व्रत उनके जीवनसाथी के प्रति समर्पण और परिवार की समृद्धि के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है। हरतालिका तीज का व्रत, उसकी कथा, पूजा विधि, और परंपराएं समाज में महिलाओं की भूमिका को सशक्त बनाने का माध्यम हैं और इसे आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाने का भी माध्यम है।`
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