गणेश चतुर्थी एक प्रमुख हिन्दू त्योहार है, जो भगवान गणेश की आराधना और पूजा-अर्चना के लिए मनाया जाता है। भगवान गणेश को ‘विघ्नहर्ता’ यानी विघ्नों को दूर करने वाला और ‘सिद्धिविनायक’ यानी सफलता के देवता के रूप में जाना जाता है। गणेश चतुर्थी का त्योहार विशेष रूप से महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन भक्त गणपति बप्पा की मूर्ति को अपने घरों और पंडालों में स्थापित कर उनकी पूजा करते हैं और दस दिन तक विशेष अनुष्ठान करते हैं। गणेश चतुर्थी को 'विनायक चतुर्थी' के नाम से भी जाना जाता है और इसे भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है।
गणेश चतुर्थी के साथ जुड़ी कई पौराणिक कथाएँ हैं। इनमें से सबसे प्रचलित कथा भगवान गणेश के जन्म की है। कहते हैं कि माता पार्वती ने अपने शरीर के उबटन से गणेश जी की आकृति बनाई और उसमें प्राण डाल दिए। उन्होंने गणेश को अपना द्वारपाल नियुक्त किया और उन्हें निर्देश दिया कि वे किसी को भी उनके कक्ष में प्रवेश करने न दें। जब भगवान शिव वहां पहुंचे और गणेश जी ने उन्हें माता पार्वती के आदेश के अनुसार अंदर जाने से रोका, तब शिव ने क्रोधित होकर अपने त्रिशूल से गणेश जी का सिर काट दिया। माता पार्वती जब यह देखती हैं, तो अत्यंत दुखी हो जाती हैं। तब भगवान शिव गणेश जी के सिर की जगह हाथी का सिर लगाकर उन्हें पुनर्जीवित करते हैं और उन्हें सभी देवताओं में प्रथम पूज्य का स्थान देते हैं। इस प्रकार गणेश चतुर्थी भगवान गणेश के जन्मोत्सव के रूप में मनाई जाती है।
गणेश चतुर्थी का इतिहास भी अत्यंत समृद्ध है। माना जाता है कि इस त्योहार की शुरुआत छत्रपति शिवाजी महाराज ने की थी। यह त्योहार भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय विशेष महत्व प्राप्त कर चुका था। बाल गंगाधर तिलक ने इसे समाज में जागरूकता फैलाने और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से सार्वजनिक रूप में मनाने की पहल की। उन्होंने गणेश उत्सव को धार्मिकता और राष्ट्रवाद के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया, जिससे गणेश चतुर्थी के उत्सव ने सार्वजनिक और राजनीतिक महत्व प्राप्त कर लिया। इस कदम ने गणेश चतुर्थी को न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से भी एकजुटता का प्रतीक बना दिया।
गणेश चतुर्थी का धार्मिक महत्व असीमित है। भगवान गणेश को बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य के देवता के रूप में पूजा जाता है। हिन्दू धर्म में हर शुभ कार्य की शुरुआत गणेश जी की पूजा से की जाती है, क्योंकि उन्हें 'विघ्नहर्ता' कहा जाता है। माना जाता है कि गणेश चतुर्थी के दिन गणेश जी की पूजा-अर्चना करने से भक्तों के जीवन के सभी विघ्न दूर होते हैं और उनके जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन होता है। इस दिन गणेश जी की मूर्ति की स्थापना करने के बाद विभिन्न प्रकार की पूजा विधियों का पालन किया जाता है, जैसे कि धूप-दीप जलाना, फूल चढ़ाना, मंत्रोच्चारण, और प्रसाद चढ़ाना।
गणेश चतुर्थी का उत्सव दस दिनों तक चलता है। यह उत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता है, विशेषकर महाराष्ट्र और मुंबई में। इस दौरान बड़े-बड़े पंडाल सजाए जाते हैं, जहां भगवान गणेश की मूर्तियों को स्थापित किया जाता है। इन मूर्तियों को अत्यंत भव्य और आकर्षक ढंग से सजाया जाता है, और दस दिनों तक उनकी पूजा की जाती है। प्रत्येक दिन भक्त गणेश जी की विशेष पूजा करते हैं और उन्हें विभिन्न प्रकार के प्रसाद, विशेषकर मोदक, अर्पित करते हैं।
दसवें दिन, जिसे 'अनंत चतुर्दशी' कहा जाता है, गणेश जी की मूर्तियों का विसर्जन किया जाता है। विसर्जन के समय भक्तगण 'गणपति बप्पा मोरया, अगले बरस तू जल्दी आ' के नारों के साथ भगवान गणेश को विदा करते हैं। यह विसर्जन समारोह अत्यंत हर्षोल्लास और उत्साह के साथ मनाया जाता है। इसे सांस्कृतिक रूप से भी एक महत्वपूर्ण अवसर माना जाता है, क्योंकि इस दिन लोग अपनी सभी चिंताओं को भगवान गणेश को समर्पित करते हुए उनके आशीर्वाद की कामना करते हैं।
हाल के वर्षों में गणेश चतुर्थी के दौरान पर्यावरणीय चिंताएँ भी सामने आई हैं। भगवान गणेश की मूर्तियों को पारंपरिक रूप से प्लास्टर ऑफ पेरिस (POP) से बनाया जाता है, जो जल में घुलनशील नहीं होता और जलस्रोतों को प्रदूषित करता है। इसलिए, पर्यावरणविदों और सरकार ने 'इको-फ्रेंडली' गणेश मूर्तियों का प्रचार-प्रसार करना शुरू किया है। ये मूर्तियाँ मिट्टी, कागज, और प्राकृतिक रंगों से बनाई जाती हैं, जिससे पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुँचता है।
अब कई भक्त इको-फ्रेंडली मूर्तियों का उपयोग करने लगे हैं, और मूर्ति विसर्जन के लिए कृत्रिम तालाबों का निर्माण भी किया जाता है। इससे न केवल पर्यावरण की सुरक्षा होती है, बल्कि जलस्रोतों की स्वच्छता भी बनी रहती है। इस तरह, गणेश चतुर्थी का उत्सव अब धीरे-धीरे पर्यावरण के प्रति जागरूकता का भी प्रतीक बनता जा रहा है।
गणेश मूर्ति को प्राकृतिक और जैविक चीजों से बनाना चाहिये। मिट्टी, बाजरे का आटा, हल्दी - अलग अलग चीजों से आप मूर्ति बना सकते हैं। इन्हें प्लास्टिक का नहीं बनाना चाहिये क्योंकि प्लास्टिक पानी में घुलता नहीं। मूर्ति को आग में भी नहीं पकाना चाहिए - किसी बर्तन की तरह बनाना है। मूर्ति पर प्लास्टिक लगे हुए पेंट का इस्तेमाल भी नहीं करना चाहिए क्योंकि ये पानी में नहीं घुलते, सिर्फ प्रदूषित करते हैं और आपको, दूसरों को सिर्फ हानि पहुँचाते हैं।
सबसे महत्वपूर्ण पहलू ये है कि आपको ये स्वतंत्रता दी गयी है कि आप एक भगवान को बनायें और फिर उन्हें विसर्जित भी कर दें। ये एक बड़ा विशेषाधिकार है जो दूसरी कोई संस्कृति आपको नहीं देती। इस विशेषाधिकार का उपयोग आपको जिम्मेदारीपूर्वक करना चाहिये। कृपया सिर्फ घुलने वाली, जैविक सामग्रियों का उपयोग करें जैसे चावल का आटा, बाजरे का आटा, हल्दी या मिट्टी। ये सामान्य रूप से वे सामग्रियाँ हैं जो हमेशा से इस्तेमाल की गयी हैं और इनसे बनी मूर्तियां बहुत अच्छी दिखती हैं।
गणेश चतुर्थी की पूजा विधि बहुत ही सरल है। इस दिन सुबह-सुबह स्नान करने के बाद स्वच्छ कपड़े पहनकर भगवान गणेश की मूर्ति को एक चौकी पर स्थापित किया जाता है। इसके बाद उन्हें गंगाजल या स्वच्छ जल से स्नान कराया जाता है। फिर भगवान गणेश को पीले वस्त्र पहनाए जाते हैं और उनका श्रृंगार किया जाता है। गणेश जी को फूल, धूप, दीप, और प्रसाद अर्पित किया जाता है। मोदक, जो गणेश जी का प्रिय भोजन माना जाता है, विशेष रूप से इस दिन उन्हें चढ़ाया जाता है। इसके बाद गणेश जी की आरती की जाती है और भजन-कीर्तन का आयोजन होता है।
गणेश चतुर्थी की पूजा में मंत्रोच्चारण का विशेष महत्व है। गणेश जी के विभिन्न मंत्र जैसे "ॐ गण गणपतये नमः" का जाप किया जाता है। इस दिन गणेश चालीसा और गणेश पुराण का पाठ भी किया जाता है। इस प्रकार भक्त गणेश जी की पूजा करके उनसे अपने जीवन के सभी कष्टों और विघ्नों को दूर करने की प्रार्थना करते हैं।
गणेश चतुर्थी केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है। यह त्योहार समाज में एकता और समरसता को बढ़ावा देता है। इस अवसर पर लोग जाति, धर्म और समुदाय से परे होकर एकजुट होते हैं और मिलकर गणेश जी की पूजा करते हैं। गणेश चतुर्थी के दौरान विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है, जिसमें नृत्य, संगीत, नाटक, और कला प्रदर्शन शामिल होते हैं। इस प्रकार, यह त्योहार समाज को सांस्कृतिक रूप से भी समृद्ध करता है।
गणेश चतुर्थी से संबंधित मंदिरों, कथाओं, मंत्रों और पूजा विधियों का विवरण इस प्रकार है:
गणेश चतुर्थी के समय भगवान गणेश की पूजा विशेष रूप से प्रसिद्ध गणेश मंदिरों में की जाती है। कुछ प्रमुख गणेश मंदिर निम्नलिखित हैं:
यह भारत के सबसे प्रसिद्ध गणेश मंदिरों में से एक है। यहाँ हर साल गणेश चतुर्थी का उत्सव बहुत धूमधाम से मनाया जाता है।
पुणे का श्री गणपति मंदिर भी बहुत प्रसिद्ध है, जहाँ गणेश चतुर्थी के दौरान बड़ी संख्या में भक्त पूजा-अर्चना के लिए आते हैं।
महाराष्ट्र में स्थित आठ प्रमुख गणेश मंदिरों का समूह अस्थविनायक कहलाता है। इन मंदिरों की यात्रा करना गणेश भक्तों के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।
इस मंदिर का विशेष महत्व है, क्योंकि यह त्रिनेत्र रूपी गणेश का एकमात्र मंदिर है। यहां लोग गणेश चतुर्थी पर विशेष पूजा करते हैं।
गणेश जी की सबसे प्रसिद्ध कथा उनके जन्म से जुड़ी हुई है। एक बार माता पार्वती ने अपने उबटन से गणेश जी का निर्माण किया और उन्हें द्वारपाल बनाया। जब भगवान शिव ने उन्हें अंदर जाने से रोका तो शिव ने क्रोधित होकर उनका सिर काट दिया। बाद में माता पार्वती के दुख को देखकर भगवान शिव ने गणेश जी को हाथी का सिर देकर पुनर्जीवित किया और उन्हें प्रथम पूज्य देवता का स्थान दिया।
एक बार गणेश जी को उनके वाहन मूषक पर सवारी करते देख चंद्रमा ने उनका उपहास किया। गणेश जी को यह अच्छा नहीं लगा और उन्होंने चंद्रमा को श्राप दे दिया कि जो कोई चंद्रमा को गणेश चतुर्थी के दिन देखेगा, उसे झूठा कलंक लगेगा। इस श्राप से छुटकारा पाने के लिए चंद्रमा ने गणेश जी की तपस्या की। तब गणेश जी ने उनके श्राप को कम करते हुए कहा कि यदि कोई व्यक्ति इस दिन चंद्रमा के दर्शन करे और श्री गणेश स्तोत्र का पाठ करे तो उसका कलंक समाप्त हो जाएगा।
एक बार भगवान शिव ने अपने दोनों पुत्रों, गणेश और कार्तिकेय, से कहा कि जो सबसे पहले पूरी पृथ्वी की परिक्रमा कर लेगा, उसे प्रथम पूज्य का दर्जा मिलेगा। कार्तिकेय तुरंत अपने वाहन मोर पर बैठकर पृथ्वी की परिक्रमा करने चले गए, लेकिन गणेश जी ने अपनी बुद्धिमत्ता से अपने माता-पिता की तीन बार परिक्रमा की और कहा कि उनके लिए माता-पिता ही समस्त संसार हैं। इस प्रकार गणेश जी को प्रथम पूज्य का दर्जा प्राप्त हुआ।
गणेश चतुर्थी के समय भगवान गणेश की पूजा के दौरान विभिन्न मंत्रों का जाप किया जाता है। इन मंत्रों का उच्चारण करने से भगवान गणेश की कृपा प्राप्त होती है और जीवन के सभी विघ्न दूर होते हैं।
"ॐ गण गणपतये नमः"
यह गणेश जी का सबसे प्रमुख मंत्र है। इसका जाप करने से सभी विघ्न दूर होते हैं और गणेश जी की कृपा प्राप्त होती है।
"वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥"
इस मंत्र का जाप कार्यों में सफलता और विघ्नों के नाश के लिए किया जाता है।
"ॐ एकदंताय विद्महे, वक्रतुंडाय धीमहि।तन्नो दंती प्रचोदयात्॥"
यह मंत्र गणेश जी की कृपा पाने के लिए बहुत प्रभावी है।
यह स्तोत्र भगवान गणेश के 108 नामों का संग्रह है। गणेश चतुर्थी के दिन इस स्तोत्र का पाठ करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
गणेश चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा विशेष विधि-विधान से की जाती है। इस दिन को शुभ बनाने के लिए विभिन्न अनुष्ठानों और विधियों का पालन किया जाता है।
गणेश चतुर्थी की पूजा के लिए आवश्यक सामग्री में गणेश जी की मूर्ति, पीला वस्त्र, दूर्वा (घास), फूल, धूप, दीपक, चंदन, अक्षत, मोदक, नारियल, और गंगाजल शामिल होते हैं।
स्नान और शुद्धि: पूजा शुरू करने से पहले स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करना चाहिए। इसके बाद पूजा स्थल को साफ करें और भगवान गणेश की मूर्ति को एक स्वच्छ स्थान पर स्थापित करें।
मूर्ति स्थापना: गणेश जी की मूर्ति को पीले वस्त्र से सजाएं और उनके सामने दीपक जलाएं।
मंत्रोच्चारण और पूजा: भगवान गणेश का ध्यान करते हुए "ॐ गण गणपतये नमः" का जाप करें। इसके बाद मूर्ति पर चंदन, फूल, अक्षत और दूर्वा अर्पित करें।
प्रसाद अर्पण: भगवान गणेश को मोदक, नारियल, और अन्य मिठाइयाँ अर्पित करें। गणेश जी का प्रिय प्रसाद मोदक होता है, इसलिए विशेष रूप से मोदक का भोग लगाएं।
आरती और भजन: पूजा के अंत में गणेश जी की आरती करें और उनके गुणगान में भजन-कीर्तन गाएं।
विसर्जन: गणेश चतुर्थी के समापन पर, गणेश जी की मूर्ति का विसर्जन किया जाता है। विसर्जन से पहले गणेश जी से अगले वर्ष पुनः आगमन की प्रार्थना की जाती है।
भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए उनके भक्त विभिन्न प्रकार की चीजें अर्पित करते हैं। विशेष रूप से, छात्रों, व्यवसायियों और नौकरीपेशा लोगों के लिए भगवान गणेश की पूजा में कुछ विशेष चीजों को अर्पित करने से उन्हें ज्ञान, समृद्धि और सफलता प्राप्त होती है। आइए देखें कि विभिन्न लोगों के लिए भगवान गणेश को क्या अर्पित किया जा सकता है:
भगवान गणेश को 'विद्या और बुद्धि के देवता' के रूप में पूजा जाता है। छात्र भगवान गणेश से ज्ञान, बुद्धिमत्ता और परीक्षा में सफलता के लिए प्रार्थना करते हैं। छात्रों को निम्नलिखित चीजें अर्पित करनी चाहिए:
दूर्वा (घास): यह भगवान गणेश को बहुत प्रिय है और इसे अर्पित करने से वे जल्दी प्रसन्न होते हैं।
मोदक: मोदक भगवान गणेश का प्रिय भोग है। यह ज्ञान और सफलता की प्राप्ति के लिए अर्पित किया जाता है।
पीले पुष्प: पीला रंग ज्ञान और सौभाग्य का प्रतीक है, इसलिए भगवान गणेश को पीले फूल अर्पित करने से छात्रों की पढ़ाई में ध्यान और समर्पण बढ़ता है।
गुड़ और चने: इसे अर्पित करने से भगवान गणेश का आशीर्वाद मिलता है और परीक्षा में सफलता प्राप्त होती है।
चंदन: चंदन को बुद्धि और शांति के लिए अर्पित किया जाता है, जिससे छात्रों का मानसिक संतुलन और एकाग्रता बढ़ती है।
भगवान गणेश व्यापार में समृद्धि और विघ्नों को दूर करने के लिए पूजे जाते हैं। व्यवसायियों को निम्नलिखित चीजें अर्पित करनी चाहिए:
सुपारी और हल्दी: यह भगवान गणेश को अर्पित करने से व्यापार में स्थिरता और वृद्धि होती है।
मोदक: व्यापार में सफलता और आर्थिक समृद्धि के लिए गणेश जी को मोदक अर्पित करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
दूर्वा: यह भगवान गणेश की कृपा प्राप्त करने और व्यापार में आने वाले विघ्नों को दूर करने के लिए अर्पित की जाती है।
सिंदूर और लाल वस्त्र: व्यापार में सफलता के लिए लाल रंग अत्यंत शुभ माना जाता है। गणेश जी को सिंदूर और लाल वस्त्र अर्पित करना व्यापार में समृद्धि लाता है।
कमल के फूल: भगवान गणेश को कमल के फूल अर्पित करने से व्यापार में नए अवसर प्राप्त होते हैं और आर्थिक स्थिति बेहतर होती है।
सेवा क्षेत्र में कार्यरत लोग भगवान गणेश से करियर में उन्नति, स्थिरता, और शांति के लिए प्रार्थना करते हैं। उन्हें निम्नलिखित चीजें अर्पित करनी चाहिए:
दूर्वा: भगवान गणेश को दूर्वा अर्पित करने से नौकरी में आने वाली कठिनाइयाँ दूर होती हैं।
मिठाइयाँ (लड्डू या मोदक): करियर में स्थिरता और उन्नति के लिए मिठाइयाँ अर्पित करना शुभ होता है।
चावल: चावल भगवान गणेश को अर्पित करने से नौकरीपेशा लोगों को सफलता और सम्मान मिलता है।
पीले वस्त्र: गणेश जी को पीले वस्त्र अर्पित करने से नौकरी में तरक्की और भाग्यशाली अवसर प्राप्त होते हैं।
धूप और दीप: भगवान गणेश की पूजा में धूप और दीप जलाने से करियर में सकारात्मकता और प्रगति होती है।
गणेश चालीसा और गणेश स्तुति: भगवान गणेश के मंत्रों और चालीसा का जाप करने से सभी तरह की विघ्न बाधाओं का नाश होता है और व्यक्ति को शांति और सफलता प्राप्त होती है।
फल और मिठाइयाँ: गणेश जी को मीठे फलों और मिठाइयों का भोग लगाना सभी प्रकार के भक्तों के लिए शुभ माना जाता है, चाहे वे छात्र हों, व्यवसायी हों या नौकरीपेशा लोग।
गणेश चतुर्थी भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अंग है। यह त्योहार केवल भगवान गणेश की पूजा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समाज में एकता, भाईचारे और सांस्कृतिक जागरूकता को भी बढ़ावा देता है। गणेश चतुर्थी का पर्व हमें यह सिखाता है कि किसी भी कार्य को करने से पहले भगवान गणेश का स्मरण करके हम अपने जीवन से सभी विघ्नों और कठिनाइयों को दूर कर सकते हैं।
Contact Us
Email: adityagupta200@gmail.com
Phone: 9731764134
Support Us(Paytm, PhonePe, Gpay) - 9731764134
Bhagwatiganj, Balrampur - 271201
Sector 11, Noida - 201301
© 2025 Amatya