गणेश जयंती को माघ शुक्ल चतुर्थी, तिलकुंद चतुर्थी, और वरद चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व भगवान गणेश के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है, जो बुद्धि और विघ्न विनाशक के देवता हैं।

गणेश जयंती की कथा

हिंदू पुराणों के अनुसार, भगवान गणेश, जो भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र हैं, का जन्म माघ मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को हुआ था। यह दिन विशेष रूप से महाराष्ट्र और कोंकण तट पर बड़ी श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। भक्तों का मानना है कि इस दिन भगवान गणेश की पूजा करने से बुद्धि, समृद्धि और नए प्रयासों में सफलता मिलती है।

अनुष्ठान

गणेश जयंती पर विभिन्न अनुष्ठान और रीति-रिवाज मनाए जाते हैं जो इस पर्व को विशेष बनाते हैं:

  1. शुद्धिकरण और तैयारियां: भक्त इस दिन को पवित्र स्नान करके, अपने घर की सफाई करके, और नए कपड़े पहनकर प्रारंभ करते हैं।

  2. भगवान गणेश की मूर्ति की स्थापना: एक पवित्र स्थान पर भगवान गणेश की मूर्ति या चित्र स्थापित किया जाता है और पूजा की जाती है।

  3. आभूषण और सजावट: मूर्ति को सिंदूर और हल्दी से सजाया जाता है, जो पवित्रता और भक्ति का प्रतीक हैं। गाय के गोबर का भी पवित्र अर्पण किया जाता है।

  4. तिलकुंद भोग: तिल और गुड़ से बने विशेष प्रसाद का तैयार किया जाता है और भगवान गणेश को अर्पित किया जाता है। बाद में यह प्रसाद भक्तों में वितरित किया जाता है।

  5. व्रत का पालन: कई भक्त दिन भर का उपवास रखते हैं और केवल चतुर्थी तिथि के समय व्रत तोड़ते हैं।

  6. मंत्रों का जाप और आरती: भक्त गणेश मंत्रों और भजनों का जाप करते हैं और भगवान गणेश की आरती करते हैं।

गणेश जयंती एक ऐसा समय है जब भक्त आत्म-चिंतन, प्रार्थना और भक्ति में लीन रहते हैं और समृद्धि और सफलता के लिए दिव्य मार्गदर्शन और आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

कथा का विवरण

प्राचीन काल में, देवी पार्वती ने अपने पति भगवान शिव के बिना स्नान करने का निर्णय लिया। उन्होंने अपनी काया के चंदन और हल्दी के लेप से एक बालक की मूर्ति बनाई और उसमें प्राण फूंक दिए। इस बालक का नाम गणेश रखा और उन्होंने उससे द्वार पर पहरा देने का आदेश दिया।

जब भगवान शिव वापस लौटे तो गणेश ने उन्हें द्वार पर रोक दिया क्योंकि वह अपनी माता के आदेशों का पालन कर रहा था। भगवान शिव को क्रोध आ गया और उन्होंने अपने त्रिशूल से गणेश का सिर काट दिया। जब देवी पार्वती ने यह देखा तो उन्हें अत्यंत दुःख हुआ। उन्होंने भगवान शिव से गणेश को पुनर्जीवित करने का आग्रह किया।

भगवान शिव ने गणेश के लिए एक हाथी का सिर जोड़ दिया और उसे पुनर्जीवित कर दिया। उन्होंने गणेश को यह वरदान दिया कि वह सभी देवताओं में प्रथम पूज्य होंगे और उनकी पूजा सबसे पहले की जाएगी।

महत्व

गणेश जयंती का महत्व इसलिए भी अधिक है क्योंकि यह हमें भगवान गणेश की महत्ता और उनके गुणों की याद दिलाता है। भगवान गणेश को विघ्नहर्ता माना जाता है, जो सभी विघ्नों और बाधाओं को दूर करते हैं। उनकी पूजा से व्यक्ति को जीवन में सफलता, समृद्धि और शांति प्राप्त होती है। अन्य अनुष्ठान

गणेश जयंती पर कुछ विशेष अनुष्ठान और गतिविधियां भी की जाती हैं:

  • गणेश स्तोत्र का पाठ: इस दिन विशेष गणेश स्तोत्रों का पाठ किया जाता है, जिसमें गणेश चालीसा, गणेश अष्टोत्तर शतनामावली, और गणेश सहस्रनामावली प्रमुख हैं।

  • गणेश जी को दूर्वा अर्पण: गणेश जी को दूर्वा (घास) अर्पित करना बहुत शुभ माना जाता है। यह अनुष्ठान उनकी कृपा पाने के लिए किया जाता है।

  • दक्षिणा और दान: इस दिन गरीबों और जरूरतमंदों को दान देना और उनकी सहायता करना भी बहुत पुण्य माना जाता है।

  • ध्यान और योग: गणेश जयंती पर ध्यान और योग करना, आत्म-चिंतन और मानसिक शांति प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण तरीका है।

प्रसिद्ध गणेश मंदिर:

गणेश चतुर्थी के समय भगवान गणेश की पूजा विशेष रूप से प्रसिद्ध गणेश मंदिरों में की जाती है। कुछ प्रमुख गणेश मंदिर निम्नलिखित हैं:

सिद्धिविनायक मंदिर, मुंबई:

यह भारत के सबसे प्रसिद्ध गणेश मंदिरों में से एक है। यहाँ हर साल गणेश चतुर्थी का उत्सव बहुत धूमधाम से मनाया जाता है।

श्री गणपति मंदिर, पुणे:

पुणे का श्री गणपति मंदिर भी बहुत प्रसिद्ध है, जहाँ गणेश चतुर्थी के दौरान बड़ी संख्या में भक्त पूजा-अर्चना के लिए आते हैं।

अस्थविनायक मंदिर:

महाराष्ट्र में स्थित आठ प्रमुख गणेश मंदिरों का समूह अस्थविनायक कहलाता है। इन मंदिरों की यात्रा करना गणेश भक्तों के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।

रणथंभौर गणेश मंदिर, राजस्थान:

इस मंदिर का विशेष महत्व है, क्योंकि यह त्रिनेत्र रूपी गणेश का एकमात्र मंदिर है। यहां लोग गणेश चतुर्थी पर विशेष पूजा करते हैं।

कणिपकम विनायक मंदिर, आंध्र प्रदेश:

यहां भगवान गणेश की स्वयंभू मूर्ति है, जिसकी गणेश चतुर्थी के समय विशेष पूजा होती है।

गणेश जी की कथाएँ:

गणेश जी के जन्म की कथा:

गणेश जी की सबसे प्रसिद्ध कथा उनके जन्म से जुड़ी हुई है। एक बार माता पार्वती ने अपने उबटन से गणेश जी का निर्माण किया और उन्हें द्वारपाल बनाया। जब भगवान शिव ने उन्हें अंदर जाने से रोका तो शिव ने क्रोधित होकर उनका सिर काट दिया। बाद में माता पार्वती के दुख को देखकर भगवान शिव ने गणेश जी को हाथी का सिर देकर पुनर्जीवित किया और उन्हें प्रथम पूज्य देवता का स्थान दिया।

गणेश जी और चंद्रमा की कथा:

एक बार गणेश जी को उनके वाहन मूषक पर सवारी करते देख चंद्रमा ने उनका उपहास किया। गणेश जी को यह अच्छा नहीं लगा और उन्होंने चंद्रमा को श्राप दे दिया कि जो कोई चंद्रमा को गणेश चतुर्थी के दिन देखेगा, उसे झूठा कलंक लगेगा। इस श्राप से छुटकारा पाने के लिए चंद्रमा ने गणेश जी की तपस्या की। तब गणेश जी ने उनके श्राप को कम करते हुए कहा कि यदि कोई व्यक्ति इस दिन चंद्रमा के दर्शन करे और श्री गणेश स्तोत्र का पाठ करे तो उसका कलंक समाप्त हो जाएगा।

गणेश और कार्तिकेय की कथा:

एक बार भगवान शिव ने अपने दोनों पुत्रों, गणेश और कार्तिकेय, से कहा कि जो सबसे पहले पूरी पृथ्वी की परिक्रमा कर लेगा, उसे प्रथम पूज्य का दर्जा मिलेगा। कार्तिकेय तुरंत अपने वाहन मोर पर बैठकर पृथ्वी की परिक्रमा करने चले गए, लेकिन गणेश जी ने अपनी बुद्धिमत्ता से अपने माता-पिता की तीन बार परिक्रमा की और कहा कि उनके लिए माता-पिता ही समस्त संसार हैं। इस प्रकार गणेश जी को प्रथम पूज्य का दर्जा प्राप्त हुआ।

गणेश मंत्र:

गणेश चतुर्थी के समय भगवान गणेश की पूजा के दौरान विभिन्न मंत्रों का जाप किया जाता है। इन मंत्रों का उच्चारण करने से भगवान गणेश की कृपा प्राप्त होती है और जीवन के सभी विघ्न दूर होते हैं।

1. गणेश मंत्र:

"ॐ गण गणपतये नमः"

यह गणेश जी का सबसे प्रमुख मंत्र है। इसका जाप करने से सभी विघ्न दूर होते हैं और गणेश जी की कृपा प्राप्त होती है।

2. वक्रतुंड मंत्र:

"वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥"

इस मंत्र का जाप कार्यों में सफलता और विघ्नों के नाश के लिए किया जाता है।

3. गणेश गायत्री मंत्र:

"ॐ एकदंताय विद्महे, वक्रतुंडाय धीमहि।तन्नो दंती प्रचोदयात्॥"

यह मंत्र गणेश जी की कृपा पाने के लिए बहुत प्रभावी है।

4. गणेश अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र:

यह स्तोत्र भगवान गणेश के 108 नामों का संग्रह है। गणेश चतुर्थी के दिन इस स्तोत्र का पाठ करना अत्यंत शुभ माना जाता है।

गणेश जयंती का समापन विशेष आरती और प्रसाद वितरण के साथ होता है। भक्त भगवान गणेश की महिमा का गुणगान करते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। इस प्रकार, गणेश जयंती न केवल भक्ति और श्रद्धा का पर्व है, बल्कि यह हमें जीवन में नई ऊर्जा और प्रेरणा भी प्रदान करता है।

गणेश जयंती के इस पावन पर्व पर, आइए हम सभी मिलकर भगवान गणेश की आराधना करें और उनके आशीर्वाद से अपने जीवन को समृद्ध और सुखमय बनाएं।

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