छठ पूजा भारतीय उपमहाद्वीप का एक प्रमुख पर्व है, जिसे विशेष रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल में मनाया जाता है। यह पर्व सूर्य देव और छठी मैया की उपासना के लिए जाना जाता है और चार दिनों तक मनाया जाता है। इस पूजा का उद्देश्य सूर्य देव से जीवन, सुख-समृद्धि और संतान प्राप्ति की कामना करना है।

छठी मैया को एक मातृ देवी के रूप में पूजा जाता है। उन्हें मातृत्व, प्रकृति, उर्वरता, और बच्चों के रक्षक के रूप में देखा जाता है। उन्हें षष्ठी देवी के नाम से भी जाना जाता है, और यह नाम "षष्ठ" यानी छठे दिन के कारण पड़ा है, क्योंकि छठी मैया की पूजा मुख्यतः कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि पर की जाती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, वह सूर्य देवता की बहन हैं और इसलिए छठ पूजा के दौरान सूर्य देवता के साथ ही उनकी भी पूजा होती है।

नीचे छठ पूजा का सम्पूर्ण विवरण दिया गया है:

छठ पूजा की कथा

छठ पूजा की अनेक कथाएं प्रचलित हैं, जिनमें प्रमुख निम्नलिखित हैं:

  1. रामायण से जुड़ी कथा: जब भगवान राम और माता सीता 14 वर्षों के वनवास के बाद अयोध्या लौटे, तब उन्होंने राज्याभिषेक के बाद कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन सूर्य देव की पूजा की। माता सीता ने सूर्य देव की आराधना कर उनके प्रति आभार प्रकट किया और उनके आशीर्वाद की कामना की। कहा जाता है कि तभी से छठ पूजा का प्रारंभ हुआ।

  2. महाभारत की कथा: महाभारत काल में कर्ण सूर्य देव के परम भक्त थे। उन्होंने कठिन साधना से सूर्य देव को प्रसन्न किया और उनसे अद्वितीय शक्ति प्राप्त की। छठ पूजा में भी सूर्य देवता और उनकी पत्नी उषा (सूर्य की किरणें) की पूजा की जाती है, इसलिए इसे कर्ण से जोड़ा जाता है।

  3. छठी मैया की कथा: प्राचीन कथा के अनुसार राजा प्रियव्रत और उनकी पत्नी मालिनी के कोई संतान नहीं थी। उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए एक यज्ञ किया, लेकिन दुर्भाग्यवश संतान मरी हुई पैदा हुई। दुखी होकर राजा और रानी ने आत्महत्या का विचार किया, तभी देवी षष्ठी (छठी मैया) प्रकट हुईं और कहा कि यदि वे उनकी उपासना करेंगे तो उन्हें संतान सुख प्राप्त होगा। इसके बाद से छठी मैया की पूजा करने की परंपरा शुरू हुई।

छठ पूजा के दौरान कुछ महिलाएं अपनी मांग में नाक से लेकर सिर तक लंबा सिंदूर लगाती हैं। इसका महत्व विशेष रूप से पारिवारिक समृद्धि, जीवन में सुख और पति के लंबी उम्र की कामना से जुड़ा हुआ है। लंबे सिंदूर का यह तरीका इस बात का प्रतीक है कि वे अपने पति के प्रति आस्था, सम्मान, और समर्पण को दर्शा रही हैं। भारतीय संस्कृति में सिंदूर को सुहाग का प्रतीक माना जाता है, और छठ पूजा में इसे लंबा लगाने का एक विशेष अर्थ होता है:

  1. पति की लंबी उम्र की कामना: यह मांग में लगाए गए सिंदूर का प्रतीक है, जो पति के स्वास्थ्य और जीवन की लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करता है।

  2. संतान सुख की प्राप्ति: छठ पूजा का संबंध छठी मैया से होने के कारण महिलाएं अपने बच्चों के सुख, स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना करती हैं। लंबा सिंदूर इस आस्था का प्रतीक है।

  3. समर्पण का प्रतीक: सिंदूर को नाक से लेकर मांग तक लगाने का उद्देश्य यह भी दर्शाता है कि महिला अपने परिवार, विशेषकर पति और बच्चों, के प्रति संपूर्ण समर्पण का भाव रखती है।

छठ पूजा के चार दिनों का महत्व और विधि

छठ पूजा चार दिनों तक मनाई जाती है, और प्रत्येक दिन का अपना अलग महत्व है:

पहला दिन - नहाय खाय (नदी स्नान और पवित्र भोजन)

  • महत्व: छठ पूजा का पहला दिन "नहाय खाय" कहलाता है, जिसमें व्रत करने वाले व्यक्ति किसी पवित्र नदी, तालाब या जल स्रोत में स्नान करते हैं और शुद्ध भोजन ग्रहण करते हैं।

  • विधि: इस दिन कद्दू-भात का प्रसाद बनाया जाता है, जिसे लौकी या कद्दू की सब्जी, चावल और चने की दाल के साथ पकाया जाता है। इस भोजन को परिवार सहित ग्रहण किया जाता है।

दूसरा दिन - खरना

  • महत्व: दूसरे दिन को "खरना" कहा जाता है। इस दिन उपवासी दिनभर निर्जल व्रत रखते हैं और शाम को प्रसाद ग्रहण करते हैं।

  • विधि: शाम को गुड़ की खीर, रोटी और फलों का प्रसाद बनाकर सूर्य देव को अर्पित किया जाता है। इसके बाद व्रती (व्रत करने वाले) इसे ग्रहण करते हैं और पुनः निर्जल व्रत का संकल्प लेते हैं जो अगले 36 घंटे तक चलता है।

तीसरा दिन - संध्या अर्घ्य

  • महत्व: तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी की संध्या को सूर्यास्त के समय अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। यह अर्घ्य जलाशय या नदी के किनारे दिया जाता है।

  • विधि: व्रती अपने परिवार और समाज के साथ सूर्य को अर्घ्य देने के लिए जलाशय पर जाते हैं। वहाँ बांस की टोकरी में फलों, ठेकुआ, चावल के लड्डू और अन्य प्रसाद सामग्री को सजाकर सूर्य देव को अर्पित किया जाता है।

चौथा दिन - उषा अर्घ्य

  • महत्व: छठ पूजा का चौथा और अंतिम दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने का होता है, जिसे उषा अर्घ्य कहते हैं।

  • विधि: प्रातः काल व्रती नदी या तालाब के किनारे इकट्ठा होकर उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। इसके बाद व्रत का पारण किया जाता है और प्रसाद का वितरण किया जाता है।

छठ पूजा का उपवास

छठ पूजा का उपवास बहुत कठिन और कठिनाईयों से भरा होता है। इसमें 36 घंटे का निर्जल व्रत रखा जाता है, जिसमें जल और भोजन दोनों का त्याग किया जाता है। यह उपवास शारीरिक और मानसिक शुद्धता का प्रतीक है, जिसमें भक्त पूरी श्रद्धा और आस्था से सूर्य देव और छठी मैया की उपासना करते हैं।

छठ पूजा के प्रसाद

छठ पूजा में विभिन्न प्रकार के प्रसाद बनाए जाते हैं, जिनमें प्रमुख हैं:

  1. ठेकुआ: यह छठ पूजा का मुख्य प्रसाद है, जिसे गेहूं के आटे, गुड़ और घी से बनाया जाता है। इसे पकाकर भगवान को अर्पित किया जाता है।

  2. कसार: चावल के आटे और गुड़ से बने लड्डू को कसार कहते हैं। यह भी प्रसाद के रूप में सूर्य देव को अर्पित किया जाता है।

  3. गुड़ की खीर: गुड़ की खीर और चावल से बने पकवान को व्रतियों द्वारा ग्रहण किया जाता है और सूर्य देव को चढ़ाया जाता है।

  4. फल: केला, नारियल, सेब, और अन्य मौसमी फलों को प्रसाद के रूप में टोकरी में सजाया जाता है।

पूजा का सम्पूर्ण समय-निर्धारण

छठ पूजा का शेड्यूल स्थान और वर्ष के अनुसार बदल सकता है, लेकिन सामान्यत: समय निम्नलिखित होता है:

  1. पहला दिन (नहाय खाय): कार्तिक शुक्ल चतुर्थी (पहले दिन सुबह स्नान कर भोजन बनाना)

  2. दूसरा दिन (खरना): कार्तिक शुक्ल पंचमी (शाम को गुड़ की खीर और रोटी का प्रसाद)

  3. तीसरा दिन (संध्या अर्घ्य): कार्तिक शुक्ल षष्ठी (शाम को सूर्यास्त के समय अर्घ्य)

  4. चौथा दिन (उषा अर्घ्य): कार्तिक शुक्ल सप्तमी (सूर्योदय के समय अर्घ्य और व्रत का पारण)

भारत के विभिन्न हिस्सों में छठ पूजा का आयोजन

छठ पूजा विभिन्न राज्यों में थोड़े भिन्न तरीकों से मनाई जाती है, लेकिन इसकी भव्यता और आस्था सभी जगह समान होती है।

  1. बिहार और झारखंड: बिहार और झारखंड में यह पर्व सबसे अधिक धूमधाम से मनाया जाता है। गंगा नदी के घाटों पर लोग इकट्ठा होते हैं और सूर्यास्त व सूर्योदय के समय सूर्य देवता को अर्घ्य अर्पित करते हैं। पटना के गंगा घाट और अन्य नदियों के किनारे छठ पूजा की विशेष सजावट देखने को मिलती है।

  2. उत्तर प्रदेश: उत्तर प्रदेश में विशेषकर पूर्वांचल क्षेत्र में छठ पूजा का विशेष महत्व है। यहां लोग गंगा, यमुना और अन्य पवित्र नदियों के किनारे व्रत करते हैं। वाराणसी, प्रयागराज और गोरखपुर के घाटों पर छठ पूजा की भव्यता देखने योग्य होती है।

  3. दिल्ली और मुंबई: प्रवासी बिहारियों और उत्तर भारतीयों के कारण दिल्ली और मुंबई में भी छठ पूजा धूमधाम से मनाई जाती है। यमुना के किनारे दिल्ली में छठ घाट बनाए जाते हैं और मुंबई में जुहू बीच और अन्य जगहों पर लोग इकट्ठा होकर छठ पूजा करते हैं।

  4. नेपाल: नेपाल के तराई क्षेत्रों में रहने वाले मधेशी समुदाय के लोग भी छठ पूजा को विशेष आस्था के साथ मनाते हैं। यहां भी बिहार और उत्तर प्रदेश की तरह घाटों पर सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा है।

  5. पश्चिम बंगाल: कोलकाता में भी गंगा नदी के किनारे छठ पूजा का आयोजन होता है, जहां बिहार और उत्तर प्रदेश से आए लोग पारंपरिक विधि से इस पर्व को मनाते हैं।

छठी मैया के प्रमुख मंदिर

भारत में छठी मैया के कुछ प्रमुख मंदिर हैं, जहाँ भक्तजन विशेष रूप से छठ पूजा के समय दर्शन के लिए आते हैं:

  1. छठी मैया मंदिर, देव (औरंगाबाद, बिहार): यह मंदिर छठी मैया के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है और यहां लोग छठ पूजा के दौरान विशेष रूप से पूजा-अर्चना के लिए आते हैं।

  2. उदीत नारायण मंदिर, सासाराम (बिहार): इस मंदिर में सूर्य देव की पूजा की जाती है और छठ पर्व के समय यह जगह श्रद्धालुओं से भरी रहती है।

  3. छठी माता मंदिर, पटना: पटना में गंगा घाट के पास स्थित यह मंदिर बहुत प्रसिद्ध है, जहां बड़ी संख्या में भक्तजन छठ पर्व के समय दर्शन के लिए आते हैं।

  4. सूर्य नारायण मंदिर, कोणार्क (ओडिशा): ओडिशा का कोणार्क सूर्य मंदिर विश्वप्रसिद्ध है। हालांकि यह विशेष रूप से छठी मैया का मंदिर नहीं है, लेकिन सूर्य देवता की पूजा के लिए यह अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है।

  5. छठी मैया मंदिर, दाउदनगर (औरंगाबाद, बिहार): यह मंदिर भी छठ पूजा के समय हजारों श्रद्धालुओं का आकर्षण केंद्र बनता है। लोग यहाँ आकर सूर्य देव और छठी मैया की पूजा करते हैं।

छठ पूजा के लोकप्रिय गीत

छठ पूजा के गीत इस पर्व का अभिन्न अंग होते हैं और इन गीतों में छठी मैया के प्रति आस्था और श्रद्धा व्यक्त की जाती है। यहाँ छठ पूजा के पाँच प्रमुख गीतों का विवरण दिया गया है:

  1. "केलवा के पात पर उगेलन सूरज देव"
    ीत छठ पूजा के समय अत्यंत लोकप्रिय है। इस गीत में सूर्य देव को अर्घ्य देने का सुंदर वर्णन है और छठी मैया की महिमा को दर्शाया गया है।

  2. "उग हो सूरज देव, अरघ के बेरिया"
    इस गीत में भक्त सूर्य देव से उगने की प्रार्थना करते हैं ताकि वे उन्हें अर्घ्य अर्पित कर सकें। यह गीत बहुत ही भक्ति भाव से भरा हुआ है।

  3. "पार करो हे छठी मईया"
    इस गीत में छठी मैया से जीवन की सभी कठिनाइयों से मुक्ति और परिवार के सुख-समृद्धि की प्रार्थना की जाती है।

  4. "हो दीनानाथ, हे छठी मईया"
    यह एक बहुत ही प्रसिद्ध और पुराने छठ पूजा गीतों में से एक है, जिसमें भक्त छठी मैया से उनके आशीर्वाद की कामना करते हैं।

  5. "सुन लीं अरजिया तोहार"
    इस गीत में छठी मैया को संबोधित करते हुए उनकी महिमा का बखान किया गया है। भक्त अपनी सभी इच्छाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करते हैं।

छठ पूजा का महत्व

  • सूर्य देव और छठी मैया का आशीर्वाद: इस पूजा के माध्यम से भक्त अपने परिवार की सुख-समृद्धि, स्वास्थ्य और संतान के लिए आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

  • प्राकृतिक शक्ति की पूजा: सूर्य देव जीवन के मूल स्रोत माने जाते हैं, और यह पूजा प्रकृति और जीवन शक्ति को सम्मान देने का प्रतीक है।

  • शारीरिक और मानसिक शुद्धि: कठिन व्रत के माध्यम से भक्त अपनी मानसिक और शारीरिक शुद्धि का अनुभव करते हैं, जो आस्था और संयम को मजबूत बनाता है।

छठ पूजा न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है बल्कि यह प्रकृति के प्रति आदर और श्रद्धा का भी प्रतीक है, जो इसे एक अत्यंत महत्वपूर्ण और पवित्र पर्व बनाता है।

छठ पूजा भारत का एक प्रमुख त्योहार है जो मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल में मनाया जाता है। यह पर्व सूर्य देवता और छठी मैया को समर्पित है। इस त्योहार में भगवान सूर्य की उपासना कर उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट की जाती है, क्योंकि सूर्य जीवन का आधार माने जाते हैं। यहां छठ पूजा की कथा, भारत में इसे मनाने के विभिन्न तरीकों, छठी मैया के प्रसिद्ध मंदिरों और छठ पूजा के लोकप्रिय गीतों का विवरण दिया गया है।

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